Maharaja Hari Singh जम्मू कश्मीर के आखिरी महाराजा हरि सिंह बहुत प्रगतिशील सोच के शख्स थे. साल 1925 में जब उन्होंने गद्दी संभाली तो ताजपोशी के दिन कहा कि मैं भले ही हिंदू हूं, पर अपनी जनता के लिए मेरा एक ही धर्म है- न्याय. महाराजा हरि सिंह ने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि उनकी रियासत में काफी आबादी मुसलमानों की थी. वह लगातार ईद के आयोजनों में शामिल होते रहे. मोहर्रम के जुलूस में शिरकत की. गद्दी संभालने के साथ ही उन्होंने जम्मू और कश्मीर में 50-50 स्कूल खोलने का ऐलान किया.महाराजा के रूप में हरि सिंह की पूरी शैली थी: – लेफ्टिनेंट जनरल महामहिम राज राजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा श्री हरि सिंहजी बहादुर इंदर महेंद्र, सिपर-ए-सल्तनत-ए-इंग्लिशिया, जीसीएसआई, जीसीआईई, जीसीवीओ, एलएलडी
हरि सिंह अमर सिंह और भोटियाली चिब के पुत्र थे Maharaja Hari Singh
गिलगित और लद्दाख में भी 10-10 स्कूल खोलने की घोषणा की. इसके अलावा डिस्पेंसरी, अस्पताल, पीने के पानी जैसी व्यवस्थाएं की.एमवाई सर्राफ अपनी किताब ‘कश्मीरी फाइट्स फॉर फ्रीडम’ में लिखते हैं कि महाराजा हरि सिंह बड़े सख्त मिजाज के थे. वह चमचागीरी कतई पसंद नहीं करते. अपने शासनकाल के दौरान वह चमचों से इतने नाराज हुए कि हर साल एक पुरस्कार देने लगे. इस पुरस्कार का नाम रखा ‘खुशामदी टट्टू’. सर्राफ लिखते हैं कि महाराजा हर साल बंद दरबार में सबसे बड़े चमचे को एक टट्टू की प्रतिमा देते थे.
एक रिपोर्ट के मुताबिक महाराजा हरि सिंह ने जो सबसे ऐतिहासिक काम किया, वह था लड़के और लड़कियों की शादी की उम्र तय करना. उन्होंने लड़कों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल और लड़कियों के लिए 14 साल तय की. अपनी रियासत में इसका कड़ाई से पालन भी करवाया.गद्दी संभालने के 8 साल बाद साल 1932 में महाराजा हरि सिंह ने सबसे क्रांतिकारी घोषणा की. यह घोषणा थी रियासत के सभी मंदिरों को दलितों के लिए खोल देना. इस घोषणा पर बहुत विवाद हुआ. जम्मू के मशहूर रघुनाथ मंदिर के पुजारी ने उनके इस ऐलान के बाद इस्तीफा दे दिया, पर महाराज ने अपना फैसला वापस नहीं लिया
अक्टूबर 1947 में कबायली पठानों ने जम्मू कश्मीर पर धावा बोल दिया और श्रीनगर के करीब तक आ गए. नेहरू और सरदार पटेल को जब यह पता चला तो उनके होश उड़ गए. खुद महाराजा हरि सिंह भी कबायली पठानों के हमले से छक्के-बक्के थे. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने पीठ में छूरा घोंपा है. हरि सिंह ने आनन फानन में भारत में विलय की सहमति दे दी. डॉमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि महाराजा हरि सिंह भले ही विलय की सारी शर्तें मानने को तैयार हो गए थे और जम्मू चले आए,
लेकिन उन्हें आखिर तक भरोसा नहीं था कि भारत उनकी मदद करेगा. वह लिखते हैं कि 17 घंटे की थकाऊ यात्रा के बाद महाराजा हरि सिंह का बेड़ा जम्मू पहुंचा. वह तुरंत अपने बेडरूम में चले गए. सोने से पहले उन्होंने अपने एडीसी को बुलाकर महाराजा की हैसियत से अंतिम आदेश दिया.महाराजा हरि सिंह ने अपने एडीसी से कहा, ”वीपी मेनन दिल्ली से लौट कर आएं, तभी मुझे जगाया जाए. उनके लौटने का मतलब होगा कि भारत ने हमारी सहायता की बात मान ली है. यदि वह सुबह होने से पहले वापस न आएं, तो इसका अर्थ होगा कि सारा खेल समाप्त हो गया है. मुझे मेरे पिस्तौल से सोते में गोली मार दी जाए…’
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