Married Life कभी आपने सोचा है कि इस रिश्ते की जो बात आपको बाहर से नजर आ जाती है, उस रिश्ते में रहकर भी वो दो लोग क्यों नहीं समझ पाते? पुराने जमाने में अक्सर ऐसे रिश्तों के बारे में कहा जाता था, ‘उसकी अक्ल पर पत्थर पड़े हैं…’ काफी हद तक ये बात सही भी है. दरअसल इस सब का आपकी अक्ल या कहें आपके मस्तिष्क से भी संबंध है. आइए जानते हैं मनोरोग विशेषज्ञ और सेक्शुअल हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. इस बारे में क्या कहते हैं।

बचपन की चीजों को ही रिश्तों में ढूंढते हैं हम Married Life
डा. बताते हैं कि इसे आप ऐसे समझें कि जैसे मान लीजिए बचपन में आपने बस डरावनी फिल्में ही देखी हैं. अब आप बड़े हुए और आपको पता चला कि फिल्मों में एक्शन, रोमांटिक, कॉमेडी, ड्रामा फिल्में भी हैं. लेकिन क्योंकि आपने बचपन से हॉरर फिल्में ही देखी हैं और आपका दिमाग ऐसी फिल्मों से ज्यादा फैमीलियर है तो बड़े होकर भी आप उसी तरह की फिल्मों की तरफ खिंचे चले जाएंगे. यहीं हमारे रिश्तों में भी होता है. उसी तरह अगर बचपन में आपको अपने रिश्तों में इग्नोर महसूस हुआ है, आपको समय नहीं दिया गया है, आपकी भावनाओं को महत्व नहीं दिया गया है, तो धीरे-धीरे आप इसके प्रति फैमिलियर हो जाते हैं.
दिमाग सही को नहीं, फैमिलियर को चुनता है
बड़े होकर भले ही आपको एक मेच्योर या केयरिंग पार्टनर मिल जाए, फिर भी आप उसी तरह की बिहेव करते हैं. क्योंकि आपका दिमाग ऐसी चीजों के प्रति ही फैमीलियर है. आप जिस तरह के रिश्ते बचपन में अपने आस-पास देखते हैं, आगे चलकर आप भी उसी तरह का रिश्ता तैयार करते हैं क्योंकि आपका मस्तिष्क उसे ही अपना मानता है. ऐसे में कोई भी बाहर से देखकर बता सकता है कि आप एक गलत रिश्ते में है, पर फिर भी हम उसी तरह के रिश्ते में बने रहते हैं. दरअसल मस्तिष्क की बात करें तो याद रखिए कि मानव का ब्रेन हमेशा उन चीजों के प्रति आकर्षित होता है, जो उसे जानी-पहचानी लगती हैं न कि उनके प्रति जो उसके लिए सही होती हैं. डॉ. बताते हैं कि इसलिए कहा जाता है कि बच्चों का मन बड़ा कोमल है, उसे सही माहौल मिलना बहुत जरूरी है. क्योंकि यही चीजें आगे चलकर उसकी पर्सनेलिटी बनाती हैं.
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