Match Girls Strike : लड़कियों की हड़ताल का माचिस कनेक्शन !

Match Girls Strike इतिहास में महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए कई बार संघर्ष किया. 1888 की माचिस की फैक्ट्री में काम करने वाली लड़कियों की हड़ताल इसका एक उदाहरण है ‘मैच गर्ल्स स्ट्राइक’. यह उस दौर की बात है जब महिलाओं का अपने अधिकारों के लिए बोलना भी अनसुना था. ऐसे समय में लंदन की ‘ब्रायंट और मे’ माचिस फैक्ट्री की महिला कर्मचारियों ने जब अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई, तो वो पूरी दुनिया में एक मिसाल बन गई. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानते हैं ‘मैच गर्ल्स स्ट्राइक’ का पूरा किस्सा.लंदन की माचिस की फैक्ट्री में आसपास की महिलाएं और नौजवान लड़कियां सुबह 6:30 बजे से काम शुरू कर देती थी. न सिर्फ उनकी 14 घंटे की शिफ्ट होती थी, बल्कि माचिस बनाने में इस्तेमाल होने वाला केमिकल उनके लिए जानलेवा साबित हो रहा था. इन सब मजबूरियों ने विरोध को चिंगारी दी.

महिलाओं पर लागू होते थे अमानवीय नियम Match Girls Strike

Match Girls Strike

कर्मचारियों के लिए माचिस फैक्ट्री में अमानवीय नियम थे. लड़कियों का वेतन वैसे ही बहुत कम था, ऊपर से उन पर तरह-तरह के फाइन लगने का डर रहता था. वो सिर्फ दो ब्रेक ले सकती थी. अगर इससे ज्यादा बार वो अपनी जगह से हटीं तो तो उनके वेतन से पैसा काट लिया जाता था. अगर वर्क स्टेशन साफ नहीं हो या गंदे जूते पहनकर फैक्ट्री आने पर कर्मचारियों के वेतन का एक बड़ा हिस्सा काट लिया जाता. माचिस फैक्ट्री उन्हें काम करने का समान भी नहीं देती थी. महिलाओं को पैंट, ब्रश जैसा समान खुद अपने पैसे से खरीदना पड़ता था.


महिलाएं हो रही थीं जबड़े के बोन कैंसर का शिकार
आर्थिक बदहाली के अलावा, फैक्ट्री का खतरनाक काम महिलाओं के शरीर को बर्बाद कर रहा था. दरअसल, माचिस बनाने के लिए स्टिक को एक घोल में डुबोया जाता था, जिसमें फाॅस्फाेरस भी होता था. सांस लेते समय यह जहरीला फाॅस्फाेरस महिलाओं के शरीर अंदर जा रहा था, जिससे वो ‘फ़ॉसी जबड़ा’ (phossy jaw) नाम की बीमारी का शिकार हो रही थीं. यह एक दर्दनाक तरह का बोन कैंसर होता है. शुरू में उनके दांतों में दर्द और जबड़े में सूजन की परेशानी हुई. धीरे-धीरे दर्द बढ़ता जाता था. हड्डी सड़ने के कारण जबड़ा हरा और काला हो जाता. सर्जरी के बिना, ये बीमारी जानलेवा साबित होती थी.कंपनी ने समस्या को ठीक करने की बजाय अपना पल्ला झाड़ लिया. निर्देश दिया कि अगर किसी को दांत में दर्द की शिकायत है तो वो अपना दांत जल्द निकलवा दे. अगर कोई उनकी बात नहीं मानता तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता.

बड़े पैमाने पर हड़ताल शुरू हुई
‘ब्रायंट और मे’ माचिस फैक्ट्री ने कर्मचारियों की वाजिब मांग सुनने की बजाय उनकी बातों को दबाना शुरू किया. इसी कड़ी में उन्होंने जुलाई 1888 में सभी से एक पेपर पर साइन कराया कि फैक्ट्री में सब काम ठीक तरह से हो रहा है. लेकिन जब एक महिला ने साइन करने से मना किया, तो फैक्ट्री ने उसे बर्खास्त कर दिया. इससे बाकी सब का गुस्सा फूट पड़ा. धीरे-धीरे बगावत की ये आग बाकी माचिस फैक्ट्रियों में फैल गई और कई माचिस बनाने वाली लड़कियां समर्थन में सामने आईं. लगभग 1500 लड़कियों ने बड़े पैमाने पर हड़ताल शुरू कर दी.


कारखाने के मालिकों ने मानी हार
एनी बेसेंट ने महिला हड़ताल के संचालन में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने एक पब्लिक फंड भी बनाया, जिसमें लंदन ट्रेड्स काउंसिल जैसे शक्तिशाली निकायों से काफी दान मिला. महिलाओं के आंदोलन को जनता से भी बढ़-चढ़कर समर्थन मिला. कई लोगों ने ‘ब्रायंट और मे’ माचिस खरीदना बंद कर दिया. शुरुआत मेंकारखाने के मालिकों ने उनकी बात नहीं मानी. लेकिन कुछ ही हफ्तों में उन्होंने हार मान ली. आय में वृद्धि और काम करने की बेहतर जगह जैसी मांगों को मान लिया गया. साथ ही कंपनी ने अमानवीय फाइन को हटा दिया और गलत तरीके से बर्खास्त की गई महिलाओं को वापस नौकरी दी.‘मैच गर्ल्स स्ट्राइक’ की सफलता के बाद देश में महिला श्रमिकों के सबसे बड़ा संघ की स्थापना हुई. यह पहली बार था जब अकुशल मजदूरों का एक संघ लंदन में बेहतर वेतन और कामकाजी परिस्थितियों के लिए हड़ताल करने में सफल हुआ था. यह हड़ताल देश के बाकी कामकाजी वर्ग के मजदूरों को यूनियन बनाने की एक प्रेरणा बनी.

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