Pauri Garhwal: राठ क्षेत्र का बूंखाल मेला बन रहा जिले की पहचान

करीब दो सौ वर्षों से विकासखंड थलीसैंण के राठ क्षेत्र स्थित बूंखाल मेेला पौड़ी जनपद की प्रमुख पहचान बन चुका है। कभी नर भैंसों की बलि के लिए कुख्यात यह मेला आज पूरी तरह से सात्विक रूप ले चुका है। वर्तमान में जिले की संस्कृति, पर्यटन व क्षेत्रीय विकास को गति देने में बूंखाल मेला सशक्त माध्यम बन गया है।

पौराणिक काल से पौड़ी के राठ क्षेत्र की आराध्य देवी कालिंका बूंखाल देवी देव आस्था के साथ ही लोगों के बीच मेल-मिलाप, पहाड़ों की परंपरा और पहचान को जीवंत बनाए हुए हैं। करीब 175 साल तक नर भैंसों की बलि के लिए पहचाने जाने वाला बूंखाल मेला आज पूरी तरह से सात्विक मेला बन चुका है।

सात्विक रूप देने के लिए बिजाल संस्था की अध्यक्ष सरिता नेगी समेत विभिन्न संगठनों और जिला व पुलिस प्रशासन के भागीरथ प्रयासों से मेले को वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआमंदिर में 2014 से बलि प्रथा बंद हो गईवर्तमान में मेले के दौरान धार्मिक अनुष्ठानों के साथ ही पारंपरिक लोक नृत्य, लोक गीत, स्थानीय हस्तशिल्पस्थानीय व्यंजन आदि का प्रदर्शन किया जाता है।

जिले का सबसे बड़ा मंदिर होगा

बूंखाल कालिंका चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि इस बार मेला शनिवार 6 दिसंबर को लगेगा। मंदिर समिति के ट्रस्टी सतेंद्र रावत ने बताया कि करीब दो करोड़ की धनराशि से मंदिर का भव्य निर्माण किया जा रहा है। सचिव कमल रावत व कोषाध्यक्ष कमल चौहान ने बताया कि मंदिर का निर्माण अगले वर्ष 2026 तक पूरा होने की संभावना है। यह जिले का सबसे बड़ा मंदिर होगा।

मेले में ध्याणियों को होता है विशेष न्योता

क्षेत्र के करीब 30 से 35 गांवों की ध्याणियों (बेटियों) को मेले के लिए विशेष रूप से न्योता भेजकर मायके बुलाया जाता है। ससुराल वापसी पर ध्याणियों को दूण कंडे के साथ सम्मान से विदा किए जाने की प्राचीन परंपरा है। देवी की पूजा हर साल दिसंबर माह के प्रथम शनिवार को ही आयोजित करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। मान्यता है कि दक्षिण काली के रूप में पूजित मां बूंखाल कालिंका को शनिवार के दिन पूजने से हर मनोकामना पूरी होती है।

पौड़ी के अन्य मेले

कोट ब्लॉक का मंजूघोष, मनसारडांडा नागराजा मेला।

खिर्सू ब्लॉक का कठबद्दी मेला।

कल्जीखाल ब्लॉक का घुसगलीखाल मेला।

पाबौ का खुड्डेश्वर मेला।

परसुंडाखाल का मकरैंण मेला।