Pauri Garhwal पौड़ी के थलीसैंण के बूंखाल में कालिंका माता मंदिर लोगों की आस्था, विश्वास और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र है। मंदिर में सदियों से चली बलि प्रथा साल 2014 से बंद होने के बाद पूजा-अर्चना, आरती, डोली यात्रा, कलश यात्रा और मेले के स्वरूप की भव्यता इसकी विशेषता है। उत्तराखंड में प्रसिद्ध बूंखाल कालिंका माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल से जुड़ा कोई प्रमाणिक इतिहास भले ही न हो लेकिन स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार मंदिर का निर्माण करीब 1800 ईसवीं में बताया जाता है।

पौराणिक काल से पौड़ी के राठ क्षेत्र की आराध्य देवी कालिंका बूंखाल देवी देव आस्था के साथ ही लोगों के बीच मेल-मिलाप, पहाड़ों की परंपरा और पहचान को जीवंत बनाए हुए हैं। करीब 175 साल तक नर भैंसों की बलि के लिए पहचाने जाने वाला बूंखाल मेला आज पूरी तरह से सात्विक मेला बन चुका है। वर्तमान में जिले की संस्कृति, पर्यटन व क्षेत्रीय विकास को गति देने में बूंखाल मेला सशक्त माध्यम बन गया है।

कन्या अपनी मां के सपने में आई
थलीसैंण के चोपड़ा गांव में एक लोहार परिवार में एक कन्या का जन्म हुआ, जो ग्वालों (पशु चुगान जाने वाले मित्र) के साथ बूंखाल में गाय चुगाने गई। जहां सभी छुपन-छुपाई खेल खेलने लगे। इसी बीच कुछ बच्चों ने उस कन्या को एक गड्ढे में छिपा दिया। मंदिर के पुजारी के मुताबिक गायों के खो जाने पर सभी बच्चे उन्हें खोजने चले जाते हैं। गड्ढे में छुपाई कन्या को वहीं भूल जाते हैं। काफी खोजबीन के बाद कोई पता नहीं चला। इसके बाद वह कन्या अपनी मां के सपने में आई। मां काली के रौद्र रूप दिखी कन्या ने हर वर्ष बलि दिए जाने पर मनोकानाएं पूर्ण करने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद चोपड़ा, नलई, गोदा, मलंद, मथग्यायूं, नौगांव आदि गांवों के ग्रामीणों ने कालिंका माता मंदिर बनाया। मंदिर में पूजा-अर्चना की जिम्मेदारी गोदा के गोदियालों को दी गई, जो सनातन रूप से आज भी इसका निर्वहन कर रहे हैं। मंदिर वर्षभर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।

जिले का सबसे बड़ा मंदिर होगा
बूंखाल कालिंका चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि इस बार मेला शनिवार 6 दिसंबर को लगेगा। मंदिर समिति के ट्रस्टी सतेंद्र रावत ने बताया कि करीब दो करोड़ की धनराशि से मंदिर का भव्य निर्माण किया जा रहा है। सचिव कमल रावत व कोषाध्यक्ष कमल चौहान ने बताया कि मंदिर का निर्माण अगले वर्ष 2026 तक पूरा होने की संभावना है। यह जिले का सबसे बड़ा मंदिर होगा।

मेले में ध्याणियों को होता है विशेष न्योता
क्षेत्र के करीब 30 से 35 गांवों की ध्याणियों (बेटियों) को मेले के लिए विशेष रूप से न्योता भेजकर मायके बुलाया जाता है। ससुराल वापसी पर ध्याणियों को दूण कंडे के साथ सम्मान से विदा किए जाने की प्राचीन परंपरा है। देवी की पूजा हर साल दिसंबर माह के प्रथम शनिवार को ही आयोजित करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। मान्यता है कि दक्षिण काली के रूप में पूजित मां बूंखाल कालिंका को शनिवार के दिन पूजने से हर मनोकामना पूरी होती है।
पौड़ी के अन्य मेले
कोट ब्लॉक का मंजूघोष, मनसार व डांडा नागराजा मेला
खिर्सू ब्लॉक का कठबद्दी मेला
कल्जीखाल ब्लॉक का घुसगलीखाल मेला
पाबौ का खुड्डेश्वर मेला
परसुंडाखाल का मकरैंण मेला

