देहरादून से अनीता आशीष तिवारी की रिपोर्ट –

politics of uttarakhand कुछ समय पहले तक उत्तराखंड की राजनीति के साथ-साथ महाराष्ट्र की राजनीति में एक अहम नाम हुआ करता था पहाड़ के चाणक्य और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का , एक राज्यपाल और राजनीतिक गुरु के तौर पर उत्तराखंड आने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ भगत सिंह कोश्यारी की जुगलबंदी लोगों ने देखी । मंच साझा करना हो , सरकारी कार्यक्रमों में शिरकत करना हो या पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच उनकी मेल मुलाकातों का सिलसिला हो , जिस तरह की भूमिका में भगत सिंह कोश्यारी दौरान में महामहिम नजर आते थे लेकिन but अब लगता है कि केंद्र सरकार की नाराजगी और संघ भाजपा की दूरी का असर उत्तराखंड में उनके पहाड़ जैसे व्यक्तित्व पर दिखने लगा है।
कभी धामी राज में फ्रंट फुट पर दिखते थे भगत दा politics of uttarakhand

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि because आजकल भगत दा के इर्द-गिर्द न उनके ख़ास नज़र आते हैं न हर वक़्त भाग दा भगद दा की रट्टा लगाने वाले दरबारी दीखते हैं। लेकिन but अब न वह भीड़ भाड़ है ना उनकी वह सक्रियता नजर आती है जैसी महामहिम के पद पर रहने के दौरान नजर आती थी।

इस बारे में जब हमने वरिष्ठ पत्रकारों से बात की तो उन्होंने बताया कि संभव है केंद्र के इशारे और पार्टी के आदेश पर दिग्गज कोश्यारी को अज्ञातवास में भेज दिया गया हो। यह भी संभव है कि नए नेताओं को अहमियत देकर उन्हें बड़े पद से नवाजने वाली भाजपा पुराने और मठाधीश नेताओं से इसलिए किनारा कर लेना चाहती है ताकि because क्षत्रप का प्रभाव छोटे-छोटे राज्यों में खत्म किया जा सके

दरअसल लोकसभा चुनाव भी दरवाजे पर खड़ा है और कांग्रेस के साथ-साथ नए गठबंधन इंडिया की चर्चाएं भी जोर पकड़ रही है ऐसे में भाजपा अगर 2024 के लक्ष्य को साधना चाहती है तो उसे पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी को दरकिनार करना ही होगा।

जैसा कि हम सब जानते हैं महाराष्ट्र में जिस तरह से महामहिम रहने के दौरान कोश्यारी चर्चाओं से विवादों तक रहे , उससे कहीं ना कहीं भाजपा को डैमेज जरूर हुआ है जिस को कंट्रोल करने के लिए उन्हें पद से हटाया गया। कुछ पार्टी के वरिष्ठ नेता भी दबी जुबान कहते हैं कि कोश्यारी जी को थोड़ा दूर रखने का इशारा दिल्ली से देहरादून को मिला ज़रूर होगा तभी अब पहले जैसी जुगलबंदी नजर नहीं आ रही है।

भगत दा आज भी पहाड़ों में अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं
यह अलग बात है कि भगत दा आज भी पहाड़ों में अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं और उम्रदराज होने के बावजूद जंगल पहाड़ और गांव नाप रहे हैं। देखना यह होगा कि जब 2024 का लोकसभा चुनाव सामने होगा तो क्या उत्तराखंड की 5 लोकसभा सीटों पर भगत सिंह कोश्यारी को उसी तरह से अहमियत दी जाएगी जैसी बीते चुनाव में मिली थी। क्योंकि because अगर अंदरखाने की खबर सच है कि धुरंधर धामी के चतुर चाणक्य को किनारे करने की हिदायत दी गई है तो उनकी उपयोगिता का पैमाना तय कर देगा कि क्या भाजपा के लिए कोश्यारी अब उपयोगी नही रहे।
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