shiva third eye कैसे मिला भगवान शिव को तीसरा नेत्र ?

Shiva Third Eye भगवान शिव की तीसरी आँख का उल्लेख कई पौराणिक कथाओं में मिलता है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब कामदेव ने भगवान शिव को काम भावना की ओर मोड़ने के लिए उन पर प्रेम-बाण छोड़ा, तो शिवजी ने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आँख खोली, जिससे कामदेव भस्म हो गए। इस घटना से शिव जी के तीसरे नेत्र के विनाश की शक्ति का पता चलता है। शिवजी का यह तीसरा नेत्र नाश और सृजन दोनों का द्वार है।

 shiva third eye

उनका यह नेत्र तब खुलता है, जब कोई कार्य धर्म के विरुद्ध होता है। हालांकि, उनकी तीसरी आँख चेतना, अंतर्दृष्टि और मानसिक स्पष्टता का प्रतीक भी है। इसलिए, भगवान शिव की यह तीसरी आँख अज्ञानता को जलाता है, अधर्म को भस्म करता है और सच्चे ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। लेकिन उनके इस अद्भुत नेत्र की उत्पत्ति कैसे हुई, चलिए पहले ये जानते हैं…

तीसरे नेत्र की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा


एक लोकप्रिय पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव के पीछे से जाकर उनकी आँखें बंद कर दीं। जैसे ही उनकी दोनों आँखें बंद हुईं, पूरा ब्रह्मांड अंधकार में डूब गया। यह स्थिति कुछ क्षणों की थी, लेकिन उस अंधकार से त्रस्त संसार में हाहाकार मच गया। उस समय भगवान शिव ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से अपने ललाट (माथे) पर एक तीसरा नेत्र प्रकट किया।

यह नेत्र अंधकार को दूर करता है और ब्रह्मांड को पुनः प्रकाश देता है। इसी घटना को तीसरे नेत्र की उत्पत्ति के रूप में बताया जाता है। बाद में जब माता पार्वती ने इस तीसरी आंख के बारे में पूछा, तो शिवजी ने बताया कि उनकी आँखें सृष्टि में सूर्य के समान है। अगर वो उस पल अपनी तीसरी आँख नहीं खोलते, तो पूरी सृष्टि का विनाश हो जाता।


शिवजी की तीसरी आँख और विनाश का संबंध

भगवान शिव की तीसरी आँख को ज्ञान, विवेक और विनाश का प्रतीक माना जाता है। उनका ये ज्ञान चक्षु भौतिक दुनिया की सीमाओं से परे सत्य, असत्य, छल, काम, अहंकार और माया को देखने में सक्षम है। शिवजी की तीसरी आंख तब खुलती है जब अधर्म, अहंकार या अत्याचार अपने चरम पर होता है। यह उन तत्वों को नष्ट कर देती है, जो सृष्टि के संतुलन और जीवन में बाधक हैं। भगवान् शिव की तीसरी आँख केवल बाहर की चीजें नहीं, बल्कि भीतर की अशुद्धियों, जैसे वासना, मोह, लोभ को भी नष्ट करती है। उनकी यह आँख इसलिए विनाशकारी मानी जाती है क्योंकि यह मनुष्य के विकारों का नाश करती है, जो मनुष्य को सत्य और ज्ञान तक पहुँचने से रोकता है। यह विनाश आवश्यक है, वरना मनुष्य कभी भी अपनी तीसरी आंख से परिचित नहीं हो पायेगा और ना ही अपनी चेतना का स्तर ऊपर उठा पायेगा।