Tharu Tribes देश दुनिया में न जाने कितने रिवाज़ , रश्म और परम्पराये हैं जिसके बारे में आप और हम कम ही जानते हैं … उत्तराखण्ड के ऊधमसिंह नगर जिले में थारू जनजाति की बड़ी आबादी रहती है इसके अलावा उत्तर प्रदेश में लखीमपुरखीरी, गोंडा, बहराइच, गोरखपुर आदि जिलों में तथा बिहार के चम्पारन और दरभंगा जिलों में एवं भारत के पूर्व में जलपाइगुड़ी (असम) से पश्चिम में कुमाऊँ (गढ़वाल) तक तथा नेपाल में, पूर्त में ‘भैंची’ से पश्चिम में ‘महाकाली’ के अंचल तक भी इनकी मौजूदगी है.
थारू जनजाति की जनसंख्या 85665 है.Tharu Tribes

इतिहासकारों के अनुसार थारू लोगों का पुराना देश राजस्थान है. ये किरात वंशज हैं और कई जातियों तथा उपजातियों में विभाजित हैं. ये लोग कद के छोटे, पीतवर्ण, चीड़ी मुखाकृति तथा समतल नासिका वाले होते हैं, जो मंगोल प्रजाति के लक्षण हैं. इसलिए कुछ इतिहासकारों ने इनका उद्गम मध्य एशिया के मूल निवासी मंगोलों से बताया है. कुछ लोग इन्हें भारत-नेपाल के आदिम निवासी सिद्ध करते हैं.
इन लोगों का रहन-सहन वहुत सादा होता है. इनका पहनावा कुछ अनोखा होता है. वैसे ये लोग केवल एक लंगोटी ही पहने रहते हैं, परन्तु शरद् ऋतु में एक बड़ा-सा कोट पहन लेते हैं. सिर पर ऊनी कपड़े की काली टोपी तथा कन्धे पर कम्बल इनके साथ हर समय रहता है. स्त्रियाँ कुर्ता तथा काले रंग के घाघरे का उपयोग करती हैं. बाल को ढकने के लिए काले रंग के रुमाल का प्रयोग करती हैं. गहने पहनने का इन्हें बहुत शौक है.
सभी विवाहित पुरुषों को स्त्रियों के अधीन रहना पड़ता है. पत्नी का आदेश मानना पुरुष का धर्म समझा जाता है,स्त्रियां अपने आपको रानी समझती हैं. पुरुष अपने आपको दास राजपूत सिपाही समझते हैं. इसका अभिप्राय यह नहीं कि पत्नियाँ अपने पति का निरादर करती हैं, बल्कि यथासंभव उनकी सेवा करती हैं. पति को ही अपना सर्वस्व समझती हैं. यह केवल एक रीति है.
थारुओं में विवाह की प्रथा बड़ी विचित्र है. विवाह करने के पहले इनमें सगाई होती है, कन्या तया वर पक्ष जब एक- दूसरे को परिणय सूत्र में बाँधने का निश्चय कर लेते हैं, तब वर पक्ष की ओर से कन्या को मिटाई तथा वस्त्र भेजे जाते हैं. इसके बाद लड़की और लड़के के पिता अपनी प्यालियाँ एक-दूसरे से बदलकर मद्यपान करते हैं. सगाई में अंतिम रीति ‘उचावल’ की होती है. इसमें कन्या की माता वर के पिता के पास आकर उसके पाँव छूती है तथा ‘उचावल’ के लिए प्रार्थना करती है. लड़के का पिता सामर्थ्यानुसार कुछ नकद रुपए लकड़ी की माँ के आँचल में डाल देता है. पुनः एक निश्चित दिन विवाह होता है.
थारुओं में अपनी समस्याओं को निपटारे के लिए अपनी बिरादरी की पंचायतें होती हैं. यह इनकी ग्रामीण अदालतें होती हैं. इस प्रसंग में यह जनजाति भी वड़ी कट्टरपंथी है, ‘मद्यप पंचगण मदिरा’ के घूँट के साथ तर्क- वितर्क करते हैं. इस प्रकार न्याय में भी मदिरा की प्रमुख भूमिका होती है. ‘वाद’ की विभिन्न धाराओं पर प्रश्नों की झड़ी लग जाती है, पराजित पक्ष को शारीरिक और आर्थिक दण्ड सहना पड़ता है. बिरादरी के निर्णय की अपील कहीं अन्यत्र कोर्ट में असम्भव है
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