Triyuginarayan Temple शादी को यादगार और शानदार बनाने के लिए आज लोग न जाने कौन कौन से नए आईडिया अपनाते हैं। शादी के लिए डेस्टिनेशन भी अजब गजब चुनते हैं। इसी कड़ी में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में त्रियुगीनारायण एक ऐसा मंदिर है, जहां पर सात फेरे लेने से मनुष्य के दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है. इसी मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत की, मंदिर में आज भी त्रेता युग से अखंड धूनी जल रही है, जिसकी राख को लोग घर ले जाते हैं. त्रियुगीनारायण मंदिर का महत्व सिर्फ भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से नहीं, बल्कि बदरीनाथ, केदारनाथ और अन्य धार्मिक स्थलों से भी जुड़ा हुआ है.
त्रियुगीनारायण मंदिर के पास चार पवित्र कुंड भी हैं, जिसमें विष्णु कुंड, ब्रह्म कुंड, सरस्वती कुंड और रूद्र कुंड यहां के बारे में मान्यता है कि अगर किसी के संतान या किसी का विवाह नहीं हो रहा है तो वह अगर इस कुंड में स्नान करता है तो फल तुरंत मिल जाता है. यहां आने वाले श्रद्धालु इन कुंडों के जल का आचमन भी करते हैं. कहा जाता है कि जब भगवान शिव और पार्वती की शादी इस मंदिर में हुई तब माता पार्वती के भाई की भूमिका भगवान विष्णु ने निभाई थी और तीर्थ पुरोहितों का काम ब्रह्मा जी ने किया था. इस मंदिर के पास ही मंदाकिनी और सोनगंगा का संगम भी होता है.
धर्माचार्य बताते हैं कि सिर्फ यह मंदिर मंदिर नहीं है बल्कि केदारनाथ और मंदिर से इसका गहरा और पौराणिक नाता है. इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा होती है और बदरीनाथ में भी भगवान विष्णु पूजे जाते हैं. मान्यता के अनुसार जिस गौरीकुंड से होते हुए भक्ति केदारनाथ जाते हैं, उस गौरीकुंड में ही तपस्या करके माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया था. यह स्थान केदारनाथ से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. भगवान शिव और पार्वती का मिलन का स्थान गौरीकुंड है और केदारनाथ में भगवान शिव की पूजा होती है. ऐसे में नर और नारायण का जो स्थान है, उसका सीधा संबंध त्रियुगीनारायण से है.
वैसे त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेता युग का माना जाता है, लेकिन आठवीं सदी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था. यह मंदिर केदारनाथ की तरह ही स्थापत्य शैली पर बना है. मंदिर में भगवान शिव की 2 फुट की मूर्ति मौजूद है, इसके साथ ही माता लक्ष्मी और माता सरस्वती की मूर्ति भी मंदिर में विराजमान है. मंदिर के परिसर में ही कुछ हवन कुंड बनाए गए हैं, जहां पर शादी संपन्न कराई जाती है.
बीते कुछ सालों में यहां पर शादी के बंधनों में बंधने वालों की संख्या में बेहद इजाफा हुआ है. ना केवल उत्तराखंड बल्कि देश और दुनिया के अलग-अलग कोनों से लोग यहां पर शादी करने के लिए आते हैं. वैसे तो हमेशा से इस स्थान पर साल में दो या तीन शादियां होती थी, लेकिन साल 2018 के बाद यहां पर शादी करने का चलन बहुत बढ़ गया है. भागदौड़ भरी जिंदगी और शहरों के शोर के बीच लोग यहां के शांत वातावरण में बड़ी संख्या में शादी करने पहुंच रहे हैं.
साल 2021 में यहां पर 51 लोगों ने शादी की, जबकि साल 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 101 तक पहुंच गया. साल 2023 में 62 से अधिक लोगों ने यहां शादी की, लेकिन साल 2023 के बाद यह आंकड़ा 124 पार कर गया. वहीं 2024 में 152 जोड़ों ने शादी की. वहीं साल 2025 में ये आंकड़ा 82 शादियों तक पहुंच गया है. मंदिर वैसे तो बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के आधीन है लेकिन शादी और अन्य कार्यक्रम यहां रहने वाले 200 तीर्थ पुरोहितों के परिवार द्वारा कराया जाता है.
शादियों के सीजन में यहां एक दिन में करीब 11 शादियां हो जाती हैं. शादी करने वाले लोगों के लिए स्थानीय महिलाओं ने एक दल बनाया है. जो शुरुआत से लेकर विदाई तक सभी कामों को पूरा करवाता है. लोगों को कोई सामान लाने की जरूरत नहीं है. सिर्फ मेहमानों लेकर आने हैं, बाकी सभी इंतजाम आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.शादी करने वाले जोड़ों को अपने साथ परिवार के सदस्य अपने कुछ महत्वपूर्ण कागज जैसे आधार कार्ड या कोई भी पहचान पत्र लाना होता है. शादी बुकिंग के दौरान ₹1100 की फीस देनी होती है, जबकि शादी संपन्न होने के बाद मंदिर की तरफ से सर्टिफिकेट दिया जाता है, जिसके लिए ₹1100 और देने होंगे.