urine colour changes : पेशाब का रंग और झाग बदले तो समझिये है खतरे की घंटी 1Big Reality 

urine colour changes दुनिया भर में कैंसर मौत की अहम वजहों में से एक हैं। भारत में इस खतरनाक बीमारी को लेकर लोग जागरूक नहीं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां ज्यादातर कैंसर के मामलों को डायग्नोसिस तब किया जाता है जब वो थर्ड स्टेज में पहुंच जाता है। जिसकी वजह से रोगी की जान बचाना मुश्किल हो जाता है। मरीज में अगर कोई लक्षण नजर आता है तो वो इसे इग्नोर कर देता है और बीमारी फैलती जाती है। इसलिए इसे शुरुआती स्टेज में पहचानना जरूरी होता है। हम यहां बात करेंगे किडनी कैंसर के बारे में। जिसे शुरुआत में ही पकड़ लिया जाए तो इसे फैलने से रोका जा सकता है।

urine colour changes किडनी कैंसर क्या होता है

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urine colour changes किडनी कैंसर को मेडिकल टर्म में रीनल सेल कार्सिनोमा कहते हैं। यह कैंसर किडनी में छोटी ट्यूबों के अस्तर में शुरू होता है। हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो किडनी कैंसर के निम्न ग्रेड धीमी गति से बढ़ते हैं। जबकि उच्च ग्रेड तेजी से बढ़ सकते हैं।शरीर में कुछ परिवर्तन पर गौर करके हम आसानी से इस बीमारी के बारे में पता लगा सकते हैं। ताकि सही वक्त पर इलाज मिल सकें।


urine colour changes किडनी कैंसर के लक्षण
urine colour changes किडनी कैंसर के शुरुआती लक्षण तो नहीं सामने आते हैं। लेकिन जैसे-जैसे यह डेवलप होते जाता है कुछ लक्षण सामने आती है जिसे इग्नोर बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। इन लक्षणों के दिखते ही डॉक्टर के पास जाना चाहिए। लक्षण हैं – पेशाब का रंग बदल जाना (गुलाबी, लाल या कोला रंग का आना) , बिना किसी कारण वजन का घटना , भूख नहीं लगना , थकान और बुखार , बार-बार बुखार आना , टखनौ और पैरों में सूजन , पेशाब के रंग पर गौर करें

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urine colour changes अगर पेशाब का रंग बदल जाता है तो इसे बिल्कुल भी इग्नोर नहीं करें। ये प्रारंभिक लक्षण है जो किडनी कैंसर में दिखाई देती है। इतना ही नहीं अगर पेशाब में खून आ रहा है तो भी ये किडनी कैंसर का संकेत हो सकती है। इसलिए पेशाब के रंग पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। पेशाब का रंग बदलना अन्य बीमारियों का भी लक्षण हो सकता है।


urine colour changes किडनी कैंसर का ट्रीटमेंट

urine colour changes किडनी कैंसर का पता लगाने के लिए बायोप्सी या फिर सीटी स्कैन किया जाता है। उसके बाद इलाज शुरू होता है। अगर यह तेजी से फैल रहा होता है तो फिर सर्जरी की जरूरतो होती है। रेडिकल या आंशिक नेफरेक्टोमी एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूरी किडनी या उसके कुछ हिस्से को निकाल देती है। जिन मरीजों की सर्जरी नहीं हो सकती है उन्हें रेडियो एक्टिविटी, कीमोथेरेपी या एब्लेशन थेरेपी से इलाज किया जाता है।

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