Uttarakhand Andolan स्पेशल में कहानी इन्द्रमणि बडोनी की  

Uttarakhand Andolan शाइनिंग उत्तराखंड न्यूज़ अपने लाखों पाठकों तक उन शहीदों और पहाड़ के नायकों की कहानिया ला रहा है जिनके बेमिसाल प्रयासों से एक नए राज्य उत्तराखड का उदय हुआ था। आंदोलन की कहानियां , रामपुर तिराहा कांड , दिल्ली से लखनऊ तक पहाड़ का संघर्ष और कुर्बानियों की इस ख़ास शृंखला में हम पहली कहानी पहाड़ के गांधी से शुरू कर रहे हैं जिनके बारे में आज की युवा पीढ़ी को जानना ज़रूरी है। 1994 का वर्ष था, तारीख थी 2 अगस्त. लम्बी दाढ़ी वाला एक दुबला पतला एक बूढा पौढ़ी प्रेक्षागृह के सामने अनशन पर बैठा था. उसकी मांग थी पृथक उत्तराखंड की. 7 अगस्त के दिन उसे जबरदस्ती उठाकर मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती करा दिया गया और बाद में दिल्ली के एम्स में भर्ती किया गया. 69 बरस के इस बूढ़े व्यक्ति ने 30 दिनों तक अनशन किया और तीसवें दिन जनता के दबाव के कारण अपना अनशन वापस ले लिया. 

उन्होंने अलग राज्य के आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। माना जाता है कि उनके सतत एवं जोरदार नेतृत्व से अलग राज्य का सपना साकार हो सका। उन्हें पौड़ी में दो अगस्त 1994 से आमरण अनशन शुरू करने के लिए भी याद किया जाता है। उनकी गिरफ्तारी के बाद आंदोलन ने नयी गति पकड़ ली और केंद्र पर अलग उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए दबाव बढ़ा। इसके बाद नौ नवंबर 2000 को नए राज्य का गठन हुआ, लेकिन बडोनी अपनी इस कामयाबी को देखने के लिए जीवित नहीं रहे और उनका 18 अगस्त 1999 को निधन हो गया। इस व्यक्ति का नाम था इन्द्रमणि बडोनी. उत्तराखंड राज्य की मांग करने वाले लोगों में सबसे प्रमुख और बड़ा नाम है इन्द्रमणि बडोनी. 

आजादी के बाद गांधीजी की शिष्या मीरा बेन 1953 में टिहरी की यात्रा पर गयी. जब वह अखोड़ी गाँव पहुंची तो उन्होंने गाँव के विकास के लिये गांव के किसी शिक्षित व्यक्ति से बात करनी चाही. अखोड़ी गांव में बडोनी ही एकमात्र शिक्षित व्यक्ति थे. मीरा बेन की प्रेरणा से ही बडोनी सामाजिक कार्यों में जुट गए। 24 दिसम्बर 1924 को टिहरी के ओखड़ी गांव में जन्मे बडोनी मूलतः एक संस्कृति कर्मी थे. 1956 की गणतंत्र दिवस परेड को कौन भूल सकता है. 1956 में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर इन्द्रमणि बडोनी ने हिंदाव के लोक कलाकार शिवजनी ढुंग, गिराज ढुंग के नेतृत्व में केदार नृत्य का ऐसा समा बंधा की तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु भी उनके साथ थिरक उठे थे.

सुरेशानंद बडोनी के पुत्र इन्द्रमणि बडोनी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई. माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए वह नैनीताल और देहरादून रहे. इसके बाद नौकरी के लिए बंबई गये जहाँ से वह स्वास्थ्य कारणों से वापस अपने गांव लौट आये. उनका विवाह 19 साल की उम्र में सुरजी देवी से हुआ था.1961 में वो गाँव के प्रधान बने. इसके बाद जखोली विकासखंड के प्रमुख बने. बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देवप्रयाग विधानसभा सीट से जीतकर प्रतिनिधित्व किया. 1977 का चुनाव उन्होंने निर्दलीय लड़ा और जीता भी. 1980 में उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल का हाथ थामा और जीवन भर उसके एक्टिव सदस्य रहे. उत्तर प्रदेश में बनारसी दास गुप्त के मुख्यमंत्रित्व काल में वे पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे. बडोनी ने 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा. यह चुनाव बडोनी दस हजार वोटो से हार गये, कहते हैं कि पर्चा भरते समय बडोनी की जेब में मात्र एक रुपया था जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी ब्रह्मदत्त ने लाखों रुपया खर्च किया.

1988 में उत्तराखंड क्रांति दल के बैनर तले बडोनी ने 105 दिन की पदयात्रा की. यह पदपात्रा पिथौरागढ़ के तवाघाट से देहरादून तक चली. उन्होंने गांव के घर-घर जाकर लोगों को अलग राज्य के फायदे बताये. 1992 में उन्होंने बागेश्वर में मकर संक्रांति के दिन उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण घोषित कर दी। माना जाता है कि सहस्त्रताल, खतलिंग ग्लेशियर, पंवाली कांठा ट्रेक की पहली यात्रा इन्द्रमणि बडोनी द्वारा ही की गयी. 18 अगस्त, 1999 को ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में उनका निधन हो गया. वाशिंगटन पोस्ट ने इन्द्रमणि बडोली को ‘पहाड़ का गांधी’ नाम दिया है.

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