What is sad fishing आजकल सोशल मीडिया खोलें तो कहीं ना कहीं ‘सैडफिशिंग’ का सामना जरूर हो जाता है. ये वो लोग हैं जो ज्यादा भावुक करने वाली बातें शेयर करने में आगे रहते हैं. मसलन, इंस्टाग्राम स्टोरी पर आत्मसम्मान से जुड़े उलझे हुए विचार साझा करना या फिर किसी अदृश्य व्यक्ति के बारे में ‘कर्म’ का अप्रत्यक्ष संकेत देना. शोधकर्ताओं ने इस तरह के ध्यान खींचने वाले व्यवहार को ‘सैडफिशिंग’ का नाम दिया है, जहां लोग ऑनलाइन सहानुभूति और प्रतिक्रियाओं के ‘माछी’ की तरह शिकार करते हैं.
सैडफिशिंग का मनोविज्ञान What is sad fishing
‘सैड फिशिंग’ शब्द 2019 में पत्रकार रेबेका री द्वारा गढ़ा गया था.’सैड फिशिंग’ शब्द, जिसे मूल रूप से सोशल मीडिया पर दिखावटी दुख का वर्णन करने के लिए गढ़ा गया था, अब असली भावनाओं को व्यक्त करने से लोगों को रोक सकता है. बहुत से लोग कभी-कभी सहानुभूति चाहते हैं, और इसमें कोई बुराई नहीं है. ध्यान आकर्षित करना एक स्वाभाविक इच्छा है.”यह सोशल मीडिया यूजर्स की सहानुभूति पाने के लिए अपनी भावनाओं को बढ़ा चढ़ा कर बताने की होती है.’ पेट्रोफेस के अनुसार जिन लोगों में मनोविज्ञान की भाषा में ‘चिंतित आसक्ति स्टाइल (anxious attachment style)’ होती है, उनमें ‘सैड फिशिंग’ की संभावना अधिक होती है. इस स्टाइल वाले लोग अकेले रहने के डर से ग्रस्त होते हैं, उन्हें लगातार आश्वासन की जरूरत होती है और दूसरों पर निर्भर रहने की नेचर रखते हैं.
सैडफिशिंग बनाम असली दुख
हालांकि, साइकेट्रिस्ट टेस ब्रिघम का मानना है कि ‘सैड फिशिंग’ की व्याख्या को और सूक्ष्म बनाना जरूरी है. उनका कहना है कि दूसरों से मान्यता पाना मानवीय स्वभाव है और यह जरूरी नहीं है कि यह हमेशा चिंतित आसक्ति स्टाइल का ही संकेत हो.उन्होंने कहा,’पहले लोग चर्च पिकनिक या किसी पार्टी में अपने बुरे दिन के बारे में बताकर सहानुभूति बटोरते थे, और सभी उन्हें घेर लेते थे, लेकिन अब हमारा दौर बदल चुका है, और यही तरीका है जिससे लोग आजकल ध्यान आकर्षित करते हैं.’ यह बताना जरूरी है कि ‘सैड फिशिंग’ और ऑनलाइन ईमानदारी से दुख साझा करने में अंतर होता है. उदाहरण के लिए, ‘सैड फिशिंग’ में कोई अपने हाल ही में हुए ब्रेकअप की ओर इशारा करते हुए किसी खास कोटेशन को पोस्ट कर सकता है. वहीं, दूसरी तरफ कोई व्यक्ति अगर डिप्रेशन से जूझने के बारे में लिखता है तो वह वास्तव में मदद मांग रहा होगा या उन लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहा होगा जो खुद भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं.
सैड फिशिंग से हो सकते हैं कई नुकसान
जब लोगों पर ऑनलाइन दुख का नाटक करने का आरोप लगता है, तो असल में जरूरतमंद लोगों के लिए खुलकर अपनी भावनाएं व्यक्त करना मुश्किल हो जाता है. उनमें आत्मसम्मान कम होने, घबराहट और शर्म की भावना पैदा हो सकती है. उन्हें उनके परिवार और दोस्त ध्यान ना देने वाले लोग समझ सकते हैं, जिससे उन्हें असल में जरूरी मदद और समर्थन मिलने की संभावना कम हो जाती है. इसलिए, जरूरी है कि हम ऑनलाइन साझा की जाने वाली भावनाओं को संदर्भ के साथ समझें. किसी को दुखी या परेशान देखकर तुरंत ‘सैड फिशिंग’ का आरोप लगाने के बजाय, उनकी बात सुनने और सहानुभूति दिखाने की कोशिश करनी चाहिए. साथ ही, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कहीं हमारी उदासीनता ही किसी को ‘सैडफिशिंग’ का सहारा ना लेने पर मजबूर कर दे.
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