History of Sengol त्रिभुज के आकार में संसद के नए भवन को बनाया गया है। संसद के नए भवन में कई तरह की खासियत इसे समकालीन इमारतों से अलग करती है। इसके साथ ही 28 मई को जब इमारत को देश को समर्पिक किया जाएगा तो आप को भारत के गौरवशाली इतिहास का भी दिखेगा जिसका नाम है सिंगोल … 14 अगस्त 1947 की रात को एक अनूठी घटना हुई, जिसके बारे में अधिकांश लोगों को जानकारी नहीं है. सेंगोल सौंपकर ही अंग्रेजों ने सत्ता का हस्तांतरण कियाा गया था. जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सौंपा गया था. सेंगोल ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।
History of Sengol आज़ाद भारत की पहचान है सिंगोल

History of Sengol जब पीएम मोदी को इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने निर्णय लिया कि संसद के लोकार्पण के दिन इसे भी स्थापित किया जाएगा. प्रधानमंत्री नेहरू ने तमिलनाडु से आए सेंगोल को स्वीकार किया था. इस अवसर पर राजेंद्र प्रसाद जैसे व्यक्तित्व भी उपस्थित थे. भारत के लोगों के पास शासन एक आध्यात्मिक परंपरा से आया था। सेंगोल शब्द का अर्थ और भाव नीति पालन से है. ये बहुत पवित्र है, और इस पर नंदी विराजमान हैं। ये आठवीं शताब्दी से चली आ रही सभ्यतागत प्रथा है. जो चोल साम्राज्य से चली आ रही है।

1947 के बाद उसे भुला दिया गया. फिर 1971 में तमिल विद्वान ने इसका जिक्र किताब में किया. भारत सरकार ने भी साल 2021-22 में इसका जिक्र किया. 96 साल के तमिल विद्वान जो 1947 में उपस्थित थे वो भी उस दिन उपस्थित रहेंगे.’ यह सोने या चांदी से बना था, और इसे अक्सर कीमती पत्थरों से सजाया जाता था. सेंगोल राजदंड औपचारिक अवसरों पर सम्राट द्वारा ले जाया जाता था, और इसका उपयोग उनके अधिकार को दर्शाने के लिए किया जाता था.

History of Sengol चोल साम्राज्य से चली आ रही परंपरा
History of Sengol अंग्रेज, भारत को सत्ता का हस्तांतरण कैसे करें, इसकी प्रक्रिया क्या होगी? लॉर्ड माउंटबेटन को भारतीय परंपरा की जानकारी नहीं थी. उन्होंने नेहरू से पूछा, वे कंफ्यूज थे. उन्होंने साथियों से चर्चा की. सी राजगोपालाचारी के सामने बात रखी गई. उन्होंने कई ग्रंथों का अध्ययन किया. उन्होंने सेंगोल की प्रक्रिया को चिन्हित किया. हमारे यहां सेंगोल के माध्यम से सत्ता के हस्तांतरण को चिन्हित किया गया है.
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