Women Against Britishers  महिलाओं की घाघरा पलटन को सलाम !

देहरादून से अनीता आशीष तिवारी की रिपोर्ट – 
Women Against Britishers देश की आजादी के लिए हजारों महिलाओं ने भी बलिदान दिया था, लेकिन but कुछ ही महिलाओं को इतिहास में जगह मिली, बाकी कई वीरांगना महिलाएं गुमनाम हैं। although भारतीय स्वतंत्रता संग्राम रूपी यज्ञ में अनेक वीरांगनाओं ने भी अपनी आहुति दी है।

Women Against Britishers एक गुमनाम गैंग की दास्तान

अंग्रेजों से भारत माता को मुक्त करने के लिए कठिनतम परिस्थितियों में भी अंतिम सांस तक लड़ते हुए अपना बलिदान दिया, लेकिन but भारतीय इतिहास का यह दुर्भाग्य रहा है कि केवल कुछ ही वीर वीरांगनाओं की शौर्य गाथा को जनमानस में व्यापक प्रचार प्रसार किया गया। न जाने कितनी वीर वीरांगनाओं की शौर्य गाथाएं आज भी इतिहास के गर्भ में दफन हैं। ऐसी ही वीरांगना थी बांदा की शीला देवी, जिसकी घागरा पलटन जब अंग्रेजों पर टूट पड़ती थी, तब अंग्रेजों को मात खानी पड़ती थी।
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जब बांदा पहुंची
चित्रकूट से शुरू हुई अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की ज्वाला मऊ से होते हुए तिंदवारी, पैलानी और बांदा तक आ पहुंची। यहां क्रांतिकारियों ने छावनी प्रभारी मिस्टर कॉकरेल गर्दन काट कर हत्या कर दी थी। नवाब बांदा अली बहादुर द्वितीय ने बांदा को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। meanwhile इस बीच जनरल विटलाक ने हजारों सैनिकों के साथ बांदा में आक्रमण कर दिया। 5 दिन तक पूरे बांदा में अंग्रेज सैनिकों ने जमकर उत्पात मचाया। हजारों लोगों को इस हमले में जान गंवानी पड़ी। बांदा नवाब ने भी जान बचाकर परिवार सहित जलालपुर घाट से बेतवा पार करके कदौरा में शरण ली।

घाघरा पलटन का बलिदान

 इस जंग को धार देने वालों में अगर शीला देवी की घाघरा पलटन का जिक्र नहीं होगा तो बात अधूरी रहेगी। इतिहास के जानकार  बताते हैं कि अनपढ़ शीला देवी ने इस जंग में अहम हिस्सेदारी के लिए महिलाओं को एकजुट किया और फिर पनघट जाकर अन्य महिलाओं को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा करना शुरू किया। खास बात यह थी कि घाघरा पलटन में शामिल ज्यादातर महिलाएं बुर्कानशी और अनपढ़ थीं, लेकिन but  क्रांति की इबारत में उनकी हिस्सेदारी मर्दों से कम नहीं रही। अंग्रेजों के हमले से आहत शीला देवी अप्रैल 1858 में अपने साथ 100 महिलाओं को लेकर अंग्रेजी फौज से तलवार युद्ध के लिए कूद पड़ी थीं। महिलाओं पर हाथ उठाना नैतिकता के विरुद्ध था, लेकिन but  उस समय तो अंग्रेजों को हर हाल में बांदा पर कब्जा करना था।
वीरांगना शीला देवी की काट दी गर्दन
यह दुर्भाग्य था कि अंग्रेज सेना में अधिकतर भारतीय सैनिक थे। वीरांगना शीला देवी अपनी महिला सहयोगियों के साथ अंग्रेज सेना को ललकारते हुए घंटों मैदान में डटी रही। इस युद्ध में अंग्रेज सैनिकों ने तलवार से शीला देवी का सिर काट दिया। उसके साथ की सभी महिलाओं को भी युद्ध के मैदान में अपनी जान की बलि देनी पड़ी, लेकिन but  शहीद होने से पहले इन महिलाओं ने तलवार और हंसिया जैसे धारदार हथियारों से कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया और सैकड़ों की तादाद में अंग्रेजों को लहूलुहान कर दिया था। आज भी आजादी की लड़ाई का जब जिक्र होता है तो शीला देवी को भी लोग याद करके अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। actually यहां एक गीत भी प्रचलित है, जो शीला देवी की वीरता को दर्शाता है।
बांदा लुटो रात कें गुइयां।
शीला देवी लड़ी दौर कें, संग में सौक मिहरियां।
अंगरेजन ने करी लराई, मारे लोग लुगइयां।
शीला देवी को सिर काटो, अंगरेजन ने गुइयां।
भगीं सहेलीं सब गांउन सें, लैके बाल मुनइयां।
गंगासिंह टेर कें रै गये, भगो इतै ना रइया।।
ShiningUttarakhandNews

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