Ghantakarna Mandir ये देवता करते हैं भगवान बदरीनाथ की सुरक्षा

Ghantakarna Mandir देहरादून में घंटाकर्ण भक्तों की महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई जिसमें जनवरी में उत्तराखंड स्तर पर भव्य घंटाकर्ण कथा का आयोजन करने का फैसला लिया गया है…देहरादून में घंटाकर्ण भगवान के भक्तों की एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में उत्तराखंड राज्य के सभी घंटाकर्ण मंदिरों को एक साथ जोड़कर आगामी जनवरी माह में एक भव्य घंटाकर्ण कथा आयोजित करने का प्रस्ताव पारित किया गया। यह पहल उत्तराखंड के धार्मिक और सांस्कृतिक एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

बैठक के दौरान सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि 15 नवंबर के आसपास देहरादून में एक व्यापक बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें पूरे उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से घंटाकर्ण मंदिरों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस प्रस्तावित बैठक में जनवरी में होने वाली कथा के आयोजन से संबंधित सभी प्रमुख बिंदुओं — जैसे आयोजन स्थल, व्यवस्थाएँ, सहयोगी टीमें, प्रचार-प्रसार, तथा भक्तों की भागीदारी — पर विस्तार से चर्चा की जाएगी और एक ठोस कार्ययोजना तैयार की जाएगी।घंटाकर्ण भगवान के प्रति आस्था और संगठन को मजबूत करने के उद्देश्य से इस बैठक में एक संचालन समिति का गठन भी किया गया। समिति में सुशांत गैरोला को अध्यक्ष, प्रशांत नौटियाल को उपाध्यक्ष, शौर्य गैरोला को सचिव, वैभव खंडूरी को उपसचिव तथा दीपक बिजल्वाण को कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई।

इस मौके पर बैठक में कई वरिष्ठ भक्त और समाजसेवी उपस्थित रहे, जिनमें बुद्धि सिंह रावत, हरीश बिजल्वाण, अनिरुद्ध सजवाण, महेश बिजल्वाण, सुधीर बिजल्वाण, आशीष नौटियाल, राहुल सजवाण और अमित बडोनी प्रमुख रूप से शामिल थे। सभी ने एकजुट होकर भगवान घंटाकर्ण की महिमा को जन-जन तक पहुँचाने और उत्तराखंड की परंपरा को नई पहचान देने का संकल्प लिया।

बैठक में वक्ताओं ने कहा कि घंटाकर्ण भगवान की कथा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि समाज को एकजुट करने का माध्यम भी है। इस आयोजन से उत्तराखंड की लोक संस्कृति, धार्मिक परंपरा और सामुदायिक भावना को नया आयाम मिलेगा। भक्तों ने उम्मीद जताई कि जनवरी में होने वाली यह कथा राज्यभर के श्रद्धालुओं के लिए एक ऐतिहासिक आयोजन साबित होगी।

 

गढ़वाल में घंटाकर्ण ऐश्वर्य और सुख सम्पत्ति पर्चाधारी देवता 

बदरीनाथ में घंटाकर्ण का है मंदिर Ghantakarna Mandir

तथा उसे देवदर्शनी (देव देखनी) कहते हैं| भगवान् बद्रीनाथ की पूजा से पहले श्री घंटाकर्ण कि पूजा का विधान है| घंटाकर्ण को बद्रीनाथ धाम का क्षेत्रपाल (रक्षक) माना जाता है, इसलिए बद्रीनाथ के कपट से पहले घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खुलते है है जो बद्रीनाथ के कपट बंद होने के बाद ही बंद किए जाते है|

हिमालय के अंग अंग में घंटाकर्ण प्रतिष्टित और पूजित हैं| टिहरी गढ़वाल में क्वीली, लोस्तु , पौड़ी गढ़वाल में खिरशु, चीनी , बाली कंडरस्यूं , चोपड़ा कोट व दूधातोली सभी जगह घंटाकर्ण पूजे जाते हैं| लोस्तु में श्री घंटाकर्ण की जात्रा हर 12 वर्ष में महाकुम्भ की तरह आयोजित कि जाती है|ऋषिकेश में वीरभद्र, घनडयाल में महाबल और बद्रीनाथ में मणिभद्र की उपस्थिति भी इस पुरे क्षेत्र पर शिव और उनके गणों के अधिपत्य को प्रमाणित करती है|

लेकिन कुछ लोकचार में घंटाकर्ण के बारे में कुछ भिन्न गाथा चलती है| जागरों में उन्हें पांडवो यानी अर्जुन (खाती) और सुबोध (सुभद्रा) का बेटा और नारायण (कृष्ण ) का भांजा कहा गया है| उन्हें अभिमन्यु माना जाता है| जबकि चीनी पौड़ी में भीम और हिडिम्बा के पुत्र (घटोत्कच) बर्बरीक माना जाता है| स्मरण रहे कि बर्बरीक राजस्थान में श्यामखाटू के नाम से विख्यात हैं|