Baba Boukhnag Mandir : देवभूमि में देवी देवताओं के प्रकोप से होते हैं प्रचंड हादसे !

देहरादून से अनीता आशीष तिवारी की रिपोर्ट –

Baba Boukhnag Mandir खबर का मकसद है आपको देवताओ की प्रिय धरती पर हुए अतीत के हादसों , घटनाओं और मान्यताओं की याद दिलाना क्योंकि ये देवताओं की धरती है जहाँ अनगिनत लोक देवता , देवियों और सिद्ध पीठों का वास है ,इस बात को बल मिलता है जब बाबा बौखनाग मंदिर के पुजारी गणेश प्रसाद बिजल्वाण कहते हैं कि निर्माण कंपनी ने मंदिर को तोड़कर गलती की है, जिस कारण यह हादसा हुआ. पिछले हफ्ते, निर्माण कंपनी के अधिकारियों ने कथित तौर पर मंदिर के पुजारी को बुलाया, अपने कार्यों के लिए माफ़ी मांगी और उनसे एक विशेष पूजा करने का अनुरोध किया.उन्होंने पूजा की और श्रमिकों को बचाने के ऑपरेशन की सफलता के लिए प्रार्थना की. उन्होंने कहा कि, “उत्तराखंड देवताओं की भूमि है. यहां किसी भी पुल, सड़क या सुरंग के निर्माण से पहले स्थानीय देवता के लिए एक छोटा मंदिर बनाने की परंपरा है. उनका आशीर्वाद लेने के बाद ही काम पूरा होता है

 

मज़दूरों की वापसी के बाद वहीं होंगे बाबा विराजमान Baba Boukhnag Mandir

Baba Boukhnag Mandir

.”पिछले कुछ दिनों में, सिल्क्यारा सुरंग के सामने एक अस्थायी मंदिर का निर्माण किया गया है, और 41 निर्माण श्रमिकों की सुरक्षित वापसी के लिए स्थानीय देवता बाबा बौखनाग से विशेष प्रार्थना की जा रही थी . स्थानीय लोगों और बचाव दल के सदस्यों सहित कई लोगों को बाबा बौखनाग के अस्थायी मंदिर में प्रार्थना करते देखा गया.


जब से निर्माणाधीन सुरंग, जो चार धाम ऑल वेदर रोड परियोजना का हिस्सा थी, 12 नवंबर को भूस्खलन के कारण ढह गई, जिससे 41 लोग अंदर फंस गए, स्थानीय लोग इसके इस हादसे के पीछे का कारण बाबा बौखनाग के क्रोध को बता रहे हैं. उनके अनुसार, संरचना ढहने से कुछ दिन पहले निर्माण कंपनी ने सुरंग के मुहाने के पास बाबा बौखनाग को समर्पित एक मंदिर को ध्वस्त कर दिया था.

स्थानीय लोगों के अनुसार बाबा बौखनाग को क्षेत्र का रक्षक माना जाता है. सिल्क्यारा गांव के निवासी ने मीडिया बताया कि, “परियोजना शुरू होने से पहले, सुरंग के मुहाने के पास एक छोटा मंदिर बनाया गया था और स्थानीय मान्यताओं का सम्मान करते हुए, अधिकारी और मजदूर पूजा करने के बाद ही सुरंग में प्रवेश करते थे. हालांकि, कुछ दिन पहले, निर्माण कंपनी प्रबंधन ने इसे हटा दिया था. लोगों का मानना ​​है कि इसी वजह से दुर्घटना हुई.”


एक अन्य स्थानीय ने बताया कि सुरंग का एक हिस्सा पहले भी धंस गया था, लेकिन एक भी मजदूर नहीं फंसा, न ही किसी अन्य प्रकार का नुकसान हुआ क्योंकि तब मंदिर वहीं खड़ा था. उन्होंने कहा कि, “हमने निर्माण कंपनी से मंदिर को न तोड़ने के लिए कहा. ये सुझाव भी दिया कि अगर उन्हें ऐसा करना ही है तो पास में एक और मंदिर बनवा दें लेकिन कंपनी ने हमारे सुझाव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह हमारा अंधविश्वास है और देखें क्या हुआ.” अतीत के हादसे प्रलय और तूफ़ान याद कीजिये जिसके आखिर में भी ऎसी ही मान्यताओं और मानवीय गलतियों की बात हमारे सामने आयी थी और इस बात को ताक़त मिली की देवभूमि में देवताओं के स्थान आसन और मान्यता से खिलवाड़ भारी पड़ता है।

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