Banarasi Paan भारत में अगर किसी एक चीज़ ने दोस्ती की शुरुआत से लेकर रॉयल स्वागत तक की भूमिका निभाई है, तो वह था पान और जब पान की बात होती है, तो सबसे पहले ज़ुबान पर जो नाम आता है, वह है बनारसी पान. यह सिर्फ एक माउथ फ्रेशनर नहीं, बल्कि काशी की आत्मा से जुड़ा एक ऐसा अनुभव है, जो स्वाद के ज़रिए श्रद्धा, परंपरा और संस्कृति को छू जाता है.
शुद्धता और सम्मान का प्रतीक माना गया है Banarasi Paan
पान को भारत में हमेशा से शुद्धता और सम्मान का प्रतीक माना गया है. किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत हो या पूजन-अर्चन, पान का पत्ता अनिवार्य होता है. आचमन से लेकर देवता की पूजा तक, हर विधि में पान की मौजूदगी दर्शाती है कि यह सिर्फ एक पत्ता नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था का वाहक है. हाँ, जब बात आती है शादी-ब्याह की, तो पान रिश्तों की डोर को मजबूती देने वाला एक ‘संस्कार पत्ता’ बन जाता है, समधी मिलन हो या दूल्हा-दुल्हन का पहला मिलन, पान हर रस्म में अपनी भूमिका निभाता है.
शिव को प्रिय है पान
बनारस, जिसे भगवान शिव की नगरी कहा जाता है, यहां पान सिर्फ खाया नहीं जाता जिया जाता है. बनारसी कहते हैं, ‘अगर दिन की शुरुआत हो पान से, तो समझो सब मंगल है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पान भगवान शिव का अत्यंत प्रिय है. इसी कारण काशी में पान को धार्मिक दृष्टि से भी विशेष स्थान प्राप्त है. यहां का हर पान मानो भोलेनाथ की कृपा का एक छोटा-सा अंश है, जिसमें मिठास है, शांति है, और आत्मीयता भी.
मुग़ल काल
पान का ज़िक्र इतिहास में भी बड़े गौरव के साथ मिलता है. मुग़ल काल में यह शाही मेहमानों के स्वागत का अहम हिस्सा बन गया था. कहा जाता है कि बादशाह भी बनारसी पान की खुशबू और स्वाद के दीवाने थे. यही वजह है कि पान धीरे-धीरे शाही ठाठ का हिस्सा बन गया और बनारस इसका दिल.
ऐसे मशहूर हुआ बनारसी पान
यह सुनने में अजीब लगता है कि बनारसी पान की खेती काशी में नहीं होती, फिर भी उसका नाम बनारसी क्यों पड़ा? असल में यह राज़ छिपा है उस प्रक्रिया में, जो पान को काशी में मिलती है. बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के कई जिलों से पान की पत्तियां बनारस लाई जाती हैं. यहां उन्हें विशेष तरीके से ‘पकाया’ जाता है. इस प्रक्रिया से न केवल उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ती है, बल्कि पत्ते में एक खास किस्म की महक और मुलायमियत भी आ जाती है, तब जाकर वह पत्ता ‘बनारसी पान’ बनता है एक स्वाद, जो कहीं और नहीं मिलता.
पीढ़ियों से चली आ रही हैं दुकानें
बनारस की गलियों में आपको ऐसी दुकानें मिलेंगी जो पीढ़ियों से सिर्फ पान ही बेच रही हैं. दीपक तांबूल भंडार, कृष्णा पान भंडार, और केशव तांबूल भंडार जैसी दुकानों ने बनारसी पान को एक ब्रांड बना दिया है. इन दुकानों पर देश-विदेश के नामचीन हस्तियां आती रही हैं. पंडित नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक, अमित शाह से लेकर मुलायम सिंह यादव तक. यहां तक कि रानी विक्टोरिया ने भी बनारसी पान का स्वाद चखा था.
पान बनाना भी एक कला है
बनारसी पान को बनाने की विधि भी उतनी ही खास है, जितना इसका स्वाद. सुपारी को कई दिनों तक पानी में भिगोया जाता है, ताकि वह मुलायम हो जाए. कत्था दूध में भिगोकर बनाया जाता है, और फिर उसे एक महीन कपड़े में लपेट कर तैयार किया जाता है. इसके बाद आती है गुलकंद, इलायची, लौंग, चिरौंजी और केसर जैसी चीज़ें जो पान को बनाती हैं स्वाद का राजा. यह सिर्फ माउथ फ्रेशनर नहीं, बल्कि बनारसी तहज़ीब का हिस्सा है हर परत में स्वाद, हर कोने में खुशबू.
अनगिनत वैरायटी
बनारस में पान की अनगिनत वैरायटी भी शामिल है यहां सिर्फ सादा पान नहीं मिलता, यहां मिलते हैं- पंचमेवा पान, गुलाब पान, बनारसी केसर पान, नवरत्न पान, राजरत्न पान, गिलोरी, अमावट पान, हर पान एक नया स्वाद, एक नई पहचान देता है. बनारसी पान को खाने के बाद एक ताज़गी मिलती है जो आत्मा तक को सुकून देती है.