biography of draupadi वो जितनी सुंदर थी उतनी ही घमंडी – पढ़िए कौन

biography of draupadi ये तो आपको मालूम ही होगा की जब पांडव द्रौपदी के साथ हिमालय की चढ़ाई करने लगे कि अब इसी रास्ते स्वर्ग तक पहुंचना है तो रास्ते में ही उनकी मृत्यु होती गई. हालांकि उन सभी ने ये सोचा था कि वो सशरीर वहां तक पहुंचेंगे. रास्ते में सबसे पहले द्रौपदी गिरीं और उनके प्राण पखेरू उड़ गए. तब पता लगा कि उन्होंने तीन बड़े पाप किए थे, इसलिए स्वर्ग के रास्ते में ही वह मृत्यु को प्राप्त हुईं. ये तीन बड़े पाप क्या थे.

biography of draupadi

दरअसल हस्तिनापुर में राजपाट करते हुए ये संकेत मिलने लगे थे कि अब युधिष्ठिर और बाकी पांडवों को राजपाट छोड़कर आध्यात्म के रास्ते पर जाने का समय आ गया है. कृष्ण के निधन ने पांडवों और द्रौपदी को झकझोर दिया था. लिहाजा उन्होंन तय कर लिया कि अब वो हिमालय की ओर जाएंगे और वहां स्वर्ग के रास्ते पर चढ़ाई करेंगे , इस रास्ते पर जब उन्होंने चढ़ाई शुरू की तो एक के बाद एक परेशानी आनी शुरू हो गई. ये रास्ता कतई आसान नहीं था. हिमालय के आगे के रास्ते पर सबसे पहले द्रौपदी लड़खड़ाईं. फिर गिरीं. पता लगा कि उनकी सांस जा चुकी है. अब वह सशरीर स्वर्ग नहीं पहुंचेंगी. तो ऐसा क्या हुआ था.चूंकि युधिष्ठिर ही उनमें सबसे ज्यादा जानकार थे.  उस दिन उन्होंने पहली बार ये बताया कि आखिर उन सभी की पत्नी द्रौपदी ने कौन से तीन पाप कर डाले.

पहला पाप

द्रौपदी ने अर्जुन को अपने अन्य पतियों की तुलना में अधिक प्रेम और महत्व दिया था, जो धर्म के अनुसार अनुचित था. एक पत्नी का कर्तव्य सभी पतियों के प्रति समान भाव रखना था, लेकिन द्रौपदी ऐसा नहीं कर पाई. ये उनका सबसे बड़ा पाप था. वो अर्जुन को लेकर सबसे ज्यादा फिक्र करती थीं. किसी भी पति के साथ रहने पर भी उन्हें अर्जुन का ही खयाल रहता था. जब अर्जुन ने दूसरी शादियां कीं तो द्रौपदी सबसे ज्यादा विचलित और नाराज हुईं. ऐसा उन्होंने किसी और पांडवों की शादी पर नहीं किया.


दूसरा पाप
द्रौपदी को अपने रूप पर बहुत अहंकार था. वह हमेशा अपनी बुद्धिमत्ता और सौंदर्य पर गर्व करती थीं. ये उनका एक पाप था. इसे लेकर उन्होंने अपने स्वयंवर में कर्ण समेत कई राजाओं का अपमान किया.द्रौपदी का सौंदर्य-गर्व उनकी पहचान का अंग था. वह जानती थीं कि वह अपूर्व सुंदर हैं. इसका उपयोग उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव के लिए भी किया. हालांकि महाभारत सीख देता है कि शारीरिक या बौद्धिक गुणों पर अत्यधिक गर्व मोक्ष के मार्ग में रुकावट बन सकता है. उनका अहंकार भी महाभारत में कई मौकों पर झलकता रहा.

द्रौपदी के स्वयंवर में शर्त थी कि कोई धनुर्विद्या में निपुण योद्धा मछली की आँख को निशाना लगाए. जब कर्ण (जो सूत पुत्र माने जाते थे) उठे, तो द्रौपदी ने स्पष्ट रूप से कहा, “मैं एक सूतपुत्र को वरमाला नहीं पहनाऊंगी.” ये उनके अहंकार का पहलू था, यहां द्रौपदी ने अपने राज कुलीन अभिमान और जातिगत दंभ को प्रकट किया.


तीसरा पाप

उन्होंने दुर्योधन का जिस तरह अपमान किया, वो वाकई गलत था और गलत तरीके से किया गया. द्रौपदी ने दुर्योधन का “अंधे का पुत्र अंधा” कहकर अपमान किया था, जिसके पाप का प्रभाव भी उसके जीवन में रहा. पांडवों के जीवन में इसके बाद ही कष्ट आने शुरू हुए. इसी वजह से उन्हें वनवास हुआ और इसकी परिणति महाभारत जैसे युद्ध के रूप में भी हुई.द्रौपदी के पाप (दोष) अन्य पांडवों की तुलना में अधिक थे, लेकिन उसकी मृत्यु सबसे पहले इसलिए हुई क्योंकि उसमें आसक्ति, पक्षपात और कुछ अहंकार जैसे दोष मौजूद थे, जो मोक्ष प्राप्ति में बाधक थे. हालांकि, यह नहीं कहा जा सकता कि उसके पाप “बहुत ज्यादा” थे.