History of Kathgodam : लकड़ी का गोदाम कैसे बना काठगोदाम स्टेशन , 1 Great Facts

History of Kathgodam भारत के पूर्वोत्तर रेलवे के अंतिम विरामस्थल के रूप में जाने जाने वाला कुमाऊं के प्रवेशद्वार के नाम से प्रसिद्ध यह क़स्बा नैनीताल जिले में गौला नदी के तट पर स्थित है। सन 1975 में अंग्रेजों के कुमाऊं अधिग्रहण से पहले यह एक छोटा सा गावं था ,जिसका नाम बाड़खोड़ी या बाडाखोड़ी था। या यूँ कह सकते हैं कि काठगोदाम का पुराना नाम बाड़खोड़ी या बाडाखोड़ी था।

History of Kathgodam शानदार पहाड़ी स्टेशन है काठगोदाम

History of Kathgodam
History of Kathgodam

History of Kathgodam यह क्षेत्र चंद शाशनकाल में रुहेले आक्रमणकारियों और लुटेरों को रोकने की प्रमुख घाटी थी। राजा कल्यानचंद जी के राज में उनके सेनापति शिवदेव जोशी ने 1743 -44 में रुहेलों की फौज को यहीं परास्त किया था। बाद में अंग्रेजों के शाशन में लकड़ी के ठेकेदारों ने  पहाड़ की इमरती लकड़ी को गौला नदी के माध्यम से ला कर  यहाँ इकट्ठा करना शुरू किया ,तब इसका नाम काठगोदाम पड़ा। काठगोदाम का अर्थ होता है लकड़ी का गोदाम।

History of Kathgodam 19वी सदी के पूर्व तक इस क्षेत्र की गणना यहाँ के कस्बों में भी नहीं होती थी। 1843 -44 में जब प्रथम बार ट्रेन लखनऊ से हल्द्वानी पहुंची तो इसके कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश की छोटी लाइन की गुवहाटी -काठगोदाम तिरहुत मेल को काठगोदाम तक बढ़ा दिया गया। आरम्भ में यहाँ अधिकतर मालगाड़ियां ही चलती थी। बाद में यहाँ यात्रियों की संख्या बढ़ने से यात्री गाड़ियां भी चलने लगी। आज यहाँ देश के लगभग सभी स्थानों को ट्रैन जाती है। यात्रियों की संख्या की बात करें तो कुमाउँनी लोगों के अलावा भारी मात्रा में पर्यटकों का आवागमन यहीं से होता है।


History of Kathgodam काठगोदाम में घूमने लायक स्थानों में कालीचौड़ मंदिर और शीतला देवी मंदिर ,है। इसके अलवा गौला नदी ,भीमताल  ,नैनीताल ,रानीबाग आदि प्रसिद्ध हैं। यह स्थान कुमाऊं मंडल के द्वार के रूप में प्रसिद्ध है ,तो यहाँ से आगे को घूमने के कई विकल्प खुल जाते हैं।

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