Mulayam Singh Death देश में समाजवाद की लहर थी। 60 के उस दशक में राम मनोहर लोहिया समाजवादी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। उस दौर में देशभर की तरह उत्तर प्रदेश के इटावा में भी समाजवादियों की रैलियां होती थीं और इन रैलियों में नेताजी मुलायम जरूर शामिल होते थे। समाजवादी विचारधारा उन्हें रमने लगती थी। अब वे अखाड़े के साथ-साथ रैलियों में पाये जाते थे। समय बीतता गया और नेताजी समाजवाद के रंग में रंगते गये।
Mulayam Singh Death मास्टरी, राजनीति और पहलवानी

- Mulayam Singh Death कुछ साल बाद नेताजी को विधायकी लड़ने के लिए टिकट तो मिला। लेकिन प्रचार करने के लिए उनके पास साइकिल के अलावा कुछ भी नहीं था। लेकिन गांव के लोग उन्हें इतना मानते थे कि उन्होंने उपवास रखना शुरू कर दिया। उससे जो अनाज बचता, उसे बेचकर गाड़ी में के लिए ईंधन की व्यवस्था होती। नेताजी ने उन्हें निराश नहीं किया। उन्होंने न सिर्फ विधायकी का चुनाव जीता, देश के सबसे बड़े सूबे के तीन बार मुख्यमंत्री बने, देश के रक्षा मंत्री बने।
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Mulayam Singh Death - Mulayam Singh Death प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बाद डॉ. लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी। मुलायम सिंह यादव उस पार्टी के सक्रिय सदस्य बन चुके थे। वे क्षेत्र के गरीबों, किसानों की बात करते और उनकी अवाज उठाते। अब सियासत, पढ़ाई और कुश्ती, वे तीनों में बराबर समय दे रहे थे। जसवंत नगर में एक कुश्ती के दंगल में युवा मुलायम सिंह पर विधायक नत्थू सिंह की नजर पड़ी। उन्होंने देखा कि मुलायम ने एक पहलवान को पलभर में चित कर दिया। नत्थू उनके मुरीद हो गये और अपना शागिर्द बना लिया।

- Mulayam Singh Death समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। मुलायम सिंह इटावा से बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद बैचलर ऑफ टीचिंग की पढ़ाई की पूरी करने के लिए शिकोहाबाद चले गये। पढ़ाई पूरी होते ही 1965 में करहल के जैन इंटर कॉलेज में नौकरी लग गयी। मुलायम अब सियासत, मास्टरी और पहलवानी, तीनों कर रहे थे। इस बीच वह साल आ गया जब मुलायम सिंह यादव के नेताजी बनने की कहानी शुरू हुई।
Mulayam Singh Death साइकिल से शुरू हुआ चुनाव प्रचार

Mulayam Singh Death वर्ष 1967 का विधानसभा चुनाव हो रहा था। मुलायम के राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह तब जसवंतनगर के विधायक थे। उन्होंने अपनी सीट से मुलायम को मैदान में उतारने का फैसला लिया। लोहिया से पैरवी की और उनके नाम पर मुहर लग गयी। अब मुलायम सिंह जसवंत नगर विधानसभा सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। तब मुलायम के पास प्रचार के लिए कोई संसाधान नहीं था। ऐसे में उनके दोस्त दर्शन सिंह ने उनका साथ दिया। दर्शन सिंह साइकिल चलाते और मुलायम कैरियर पर पीछे बैठकर गांव-गांव जाते। पैसे नहीं थे। ऐसे में दोनों लोगों ने मिलकर एक वोट, एक नोट का नारा दिया। वे चंदे में एक रुपया मांगते और उसे ब्याज सहित लौटने का वादा करते। इस बीच चुनाव प्रचार के लिए एक पुरानी अंबेस्डर कार खरीदी। गाड़ी तो आ गयी, लेकिन उसके लिए ईंधन यानी तेल की व्यवस्था कैसे हो। इसके लिए गांव के लोगों ने ब्रत रखकर बचत की और नामुमकिन को मुमकिन बना दिया जो फिर इतिहास बना।

Mulayam Singh Death मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक करियर पर एक नजर
Mulayam Singh Death 1967 में मुलायम सिंह यादव पहली बार विधायक और मंत्री भी बने। इसके बाद 5 दिसंबर 1989 को पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अब तक तीन बार वह मुख्यमंत्री और केंद्र में रक्षा मंत्री रह चुके हैं। मुलायम ने अपना राजनीतिक अभियान जसवंत नगर विधानसभा सीट से शुरू किया और सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से आगे बढ़े। मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक का इंतजार करना पड़ा।केन्द्र और उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी और वह राज्य सरकार में मंत्री बनाये गये। बाद में चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष बने। विधायक का चुनाव लड़े और हार गए। 1967, 74, 77, 85, 89 में वह विधानसभा के सदस्य रहे। 1982-85 में विधानपरिषद के सदस्य रहे। आठ बार राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। 1992 में समजावादी पार्टी का गठन किया। सपा ने देश के सवसे बड़े राज्य पर कई बार राज किया है और उसका अच्छा खासा वोटबैंक भी नेताजी के लिए लड़ने मरने को तैयार रहता है। लेकिन अब उनके दिग्गज नेताजी के हर दांव पर कुदरत का चक्र भारी पड़ चुका है , समर्थक गमगीन हैं और देश का हर नेता और दल उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है।
खबर में बात अंकिता हत्याकांड की – https://shininguttarakhandnews.com/dhami-on-ankita-case/
