NCPCR on Madarsa पहले से ही निकम्मेपन और कुम्भकर्णी नींद की वजह से फजीहत झेल रहा उत्तराखंड मदरसा बोर्ड बंद होना चाहिए ये हम नहीं अब भाजपा के बड़े नेता भी मांग कर रहे हैं। दरअसल इसकी आग तो पहले से ही सुलग रही थी जब से इस बोर्ड में स्थानीय मुस्लिम नेताओं को नज़रअंदाज़ किया गया था इसके बाद तो स्थानीय मुस्लिम नेताओं की नाराज़गी की खबरें सीएम धामी के कानों तक भी पहुँच रही थी। इस मामले पर कांग्रेस ने भी जमकर चुटी ली और वक़्फ़ बोर्ड और मदरसा बोर्ड के चेयरमैन के बीच का अंदरूनी शीत युद्ध सियासी मैदान में मंज़र ए आम हो गया …. उस पर कोढ़ में खाज बन गयी एनसीपीसीआर की सिफारिश …..
निरीक्षण में मिली खामियां और मिल गया आधार NCPCR on Madarsa
दरअसल जिस वक़्त मदरसा बोर्ड को पीएम मोदी और सीएम धामी के विजन पर धरातल में काम करना चाहिए था उस वक़्त मोटी तनख्वाह और सरकारी लाव लशकर के साथ बोर्ड के ज़िम्मेदार अपना भौकाल जमाने में मशगूल थे और मदरसे चलाने वाले अपने अपने रौ में बह रहे थे। सेटिंग गेटिंग और लापरवाही का आलम ये रहा कि जब NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने मई 2024 में देहरादून के कुछ मदरसों का निरीक्षण किया तो यहाँ उन्होंने कई खामियां पाईं. निरीक्षण के बाद ही आयोग ने यह कदम उठाने का फैसला किया.इसके बाद NCPCR ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र भेजकर मदरसा बोर्ड को भंग करने की सिफारिश की. आयोग ने कहा कि मदरसों में बच्चों को उचित औपचारिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में यह आवश्यक कदम है
देहरादून में मुस्लिम स्कॉलर्स कहते हैं कि उत्तराखंड मदरसा बोर्ड ने अपनी ज़िम्मेदारी से किनारा कर देश भर में मदरसा संचालन के बीच अपनी शर्मिंदगी कराई है। अगर लाव लश्कर की बजाय कौम की खिदमत और बच्चों के मुस्तक़बिल के लिए ये तथाकथित मुस्लिम नेता अपना ध्यान लगते तो ये नौबत ही न आती। वहीँ जब हमने मुस्लिम मदरसों के संचालक से बात की तो उन्होंने भी माना कि मदरसा बोर्ड को जिस तरह से अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभानी चाहिए उसमें बोर्ड गंभीर नहीं है। तभी एनसीपीसीआर ने मदरसों में पढ़ रहे बच्चों को दूसरे विद्यालयों में दाखिला कराने की भी सिफारिश की है.
आपको बता दें कि आयोग ने बच्चों के मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के बीच उत्पन्न विरोधाभास पर चिंता व्यक्त की है.NCPCR के अनुसार, बच्चों को केवल धार्मिक संस्थानों में भेजना जैसे- मदरसा, उन्हें राइट टू एजुकेशन (आरटीई) अधिनियम 2009 के तहत मिलने वाले अधिकारों से वंचित कर रहा है. आयोग ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा करते हैं. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि बच्चों को औपचारिक शिक्षा से बाहर रखा जाए. अगर मदरसे अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं तो उन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही राज्य सरकार को मदरसा बोर्ड और मदरसों को मिलने वाले वित्तीय सहायता को बंद करने की सिफारिश की गई है.
गैर-मुस्लिम बच्चों को ट्रांसफर की मांग
NCPCR ने पत्र में यह भी सुझाव दिया है कि मदरसों में पढ़ने वाले सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को तुरंत औपचारिक विद्यालयों में ट्रांसफर किया जाए. उत्तराखंड के मदरसों में 749 गैर-मुस्लिम बच्चे पढ़ रहे हैं, इन्हें औपचारिक शिक्षा दिलाई जाए. इसके लिए उन्हें विद्यालयों में भर्ती कराने का आदेश दिया है. आयोग ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के बच्चों को भी, चाहे वे मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ रहे हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक शिक्षा के लिए स्कूलों में दाखिल कराया जाना चाहिए.
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