सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक विवादित फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें नाबालिग लड़की के साथ हुए यौन हमले को रेप की कोशिश नहीं माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को असंवेदनशील बताते हुए स्वतः संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई शुरू की है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार समेत सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को लेकर देशभर में आलोचना हो रही थी।
किस मामले में आया था फैसला?
दरअसल, 17 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि 11 साल की बच्ची को खींचकर पुलिया के नीचे ले जाना, उसके शरीर को गलत तरीके से छूना और उसके कपड़े उतारने की कोशिश करना रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता। हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा था कि यह लड़की की गरिमा पर हमला तो है, लेकिन इसे बलात्कार या उसकी कोशिश नहीं कहा जा सकता। इसी आधार पर उन्होंने आरोपियों पर लगी धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो एक्ट की कड़ी धाराएं हटा दी थीं।
लोगों ने की थी SC से अपील
इस फैसले की आलोचना होने लगी और कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) से इसमें दखल देने की अपील की। ‘वी द वीमेन’ नाम की एक संस्था ने भी इस फैसले के खिलाफ चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) के जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की और हाई कोर्ट के जज की आलोचना की। उन्होंने कहा कि- “आमतौर पर वे किसी हाई कोर्ट के जज पर टिप्पणी नहीं करते, लेकिन यह फैसला बेहद असंवेदनशील है और गलत संदेश देता है।”
“ऐसे फैसले समाज में गलत धारणा बनाते हैं”
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि- “इस तरह के फैसले पर रोक लगाना जरूरी हो जाता है, क्योंकि इससे समाज में गलत धारणा बनती है”। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि- “हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को ध्यान देना चाहिए कि ऐसे जज संवेदनशील मामलों की सुनवाई न करें”। कोर्ट ने यह भी गौर किया कि हाई कोर्ट ने यह फैसला जल्दबाजी में नहीं, बल्कि चार महीने तक विचार करने के बाद सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून की दृष्टि से गलत और अमानवीय करार देते हुए फैसले पर रोक लगा दी और सभी पक्षों को नोटिस जारी कर दिया।