Vrindavan History आपने बांके बिहारी की नगरी वृन्दावन के बारे में सुना तो होगा ही , बहुत से लोगों ने तो वहां जाकर बांके बिहारी के दर्शन भी किये होंगे लेकिन क्या आप जानते हैं की श्रीधाम वृंदावन में ठाकुर जी स्वयं निवास करते हैं क्योंकि वृंदावन भगवान का घर है। यात्री अक्सर पूछते हैं कि वृंदावन को वृंदावन ही क्यों कहते हैं? जवाब में विद्वान् बताते हैं ऐसा वन और वहां लगे बृंदा पौधे यानी तुलसी पौधे जो कृष्ण के लिए वहां खड़े हैं। इसी वजह से इस वन का नाम वृंदावन पड़ा। अगर साफ शब्दों में समझाएं, ‘वृंदा’ या ‘ब्रिंदा’ का मतलब होता है तुलसी, जिसे हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का सबसे जरूरी हिस्सा माना जाता है।
पूजा में तुलसी के पत्ते भगवान को चढ़ाए जाते हैं और तुलसी की माला बनाकर भगवान को पहनाई जाती है। ‘वन’ संस्कृत में जंगल को कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पहले वृंदावन एक ऐसा स्थान था जहां तुलसी के घने जंगल हुआ करते थे। इसी वजह से इस जगह का नाम पड़ा – वृंदावन। आधुनिक वृंदावन शहर की शुरुआत 16वीं सदी की शुरुआत में हुई थी। ये शहर गोविंद देव मंदिर के आसपास बसना शुरू हुआ, जो आज भी मौजूद सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और अपनी शानदार वास्तुकला के लिए जाना जाता है। महाभारत और कुरुक्षेत्र युद्ध के समय, जब कृष्ण मुख्य भूमिका में थे, तब वृंदावन का नाम खूब प्रसिद्ध था।
लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ वृंदावन की पहचान कम होती गई और इसकी पहले जैसी शोभा भी खत्म हो गई। उसी समय हिंदू धर्म में भी कई बदलाव और नई सोच की लहर चल रही थी। फिर पश्चिम बंगाल के संत चैतन्य महाप्रभु ने वृंदावन को दोबारा खोजा। उन्हीं की कोशिशों से दुनिया ने एक बार फिर इस ऐतिहासिक और पवित्र जगह के बारे में जानना शुरू किया।
बांके बिहारी मंदिर की अपनी अनोखी मान्यता है, यहां आए दिन हजारों की संख्या में पर्यटकों और भक्तों की कतार लगती है। सुबह से लेकर शाम तक यहां की भीड़ ऐसी हो जाती है कि इंसान को पैर रखने की जगह नहीं मिलती। बता दें, यहां लोग श्री कृष्ण की भक्ति में लीन होने के लिए हर हफ्ते आते हैं। वृंदावन घूमने की जगहों में बांके बिहारी मंदिर सबसे टॉप 10 जगहों में गिना जाता है।