देहरादून से अनीता तिवारी की रिपोर्ट –
What Is Rakshsi Snan अक्सर हम स्नान करने को दिनचर्या के दूसरे कामों की तरह ही करते हैं. यानी जब समय होता है, उसी समय स्नान कर लेते हैं. पर हिंदू धर्म में स्नान करने का समय तय किया गया है. अन्यथा जीवन में कई संकट आ जाते हैं.यूं तो पुराणों में पवित्र नदियों में स्नान को सर्वोत्तम बताया गया है. पर यदि घर में स्नान कर रहे हैं तो उसके भी कई नियम हैं.
What Is Rakshsi Snan वर्षा के जल से स्नान करना है दिव्य स्नान

- What Is Rakshsi Snan: यूं तो पुराणों में पवित्र नदियों में स्नान को सर्वोत्तम बताया गया है. पर यदि घर में स्नान कर रहे हैं तो उसके भी कई नियम हैं.अक्सर हम स्नान करने को दिनचर्या के दूसरे कामों की तरह ही करते हैं. यानी जब समय होता है, उसी समय स्नान कर लेते हैं. पर हिंदू धर्म में स्नान करने का समय तय किया गया है. अन्यथा जीवन में कई संकट आ जाते हैं.यूं तो पुराणों में पवित्र नदियों में स्नान को सर्वोत्तम बताया गया है. पर यदि घर में स्नान कर रहे हैं तो उसके भी कई नियम हैं.
धर्म अनुसार स्नान - What Is Rakshsi Snan सुबह 5 से 6 बजे के बीच किया गया स्नान देव स्नान कहलाता है. इस समय किया गया स्नान, श्रेष्ठ स्नान बताया गया है. इससे जीवन में उत्तम फलों की प्राप्ति होती है.सूर्योदय के समय या सू्र्योदय के ठीक बाद किया गया स्नान भी उत्तम फल देने वाला कहा गया है. इसे मानव स्नान कहा जाता है. इसका समय सुबह 6 से 8 बजे के बीच का कहा गया है.सुबह 8 बजे के बाद जो स्नान किया जाता है उसे राक्षसी स्नान कहा जाता है. इस स्नान को धर्म के अनुसार निषेध बताया गया है.
हर स्नान का अलग फल
- हिंदू धर्म के अनुसार, जितनी जल्दी स्नान किया जाए, उतना ही बड़ा फल मिलता है. जो देव स्नान करते हैं, उनके घर में सुख-शांति,समृद्धि, विद्या, बल, आरोग्य निवास करता है. मानव स्नान करने से हर काम में सफलता, भाग्योदय होता है. जो राक्षसी स्नान करते हैं कि उन्हें दरिद्रता, हानि का सामना करना होता है.
स्नान के सात प्रकार होते है-
- What Is Rakshsi Snan 1-मन्त्र स्नान- ‘आपो हिष्ठा’ इत्यादि मन्त्रों से मार्जन करना। 2-अग्नि स्नान- अग्नि की राख पूरे शरीर में लगाना जिसे भस्म स्नान कहा जाता है। 3-भौम स्नान- पूरे शरीर में मिटटी लगाने को भौम स्नान कहते है। 4- वायव्य स्नान- गाय के खुर की धूलि लगाने को वायव्य स्नान कहते है। 5- मानसिक स्नान- आत्म चिन्तन करना एंव निम्न मन्त्र ” ऊॅ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्रााभ्यन्तरः शुचि।। अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्। स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्ं।। को पढ़कर अपने शरीर पर जल छिड़कने को मानसिक स्नान कहते है। 6- वरूण स्नान- जल में डुबकी लगाकर स्नान करने को वरूण स्नान कहते है। 7-दिव्य स्नान- सूर्य की किरणों में वर्षा के जल से स्नान करना दिव्य स्नान कहलाता है।