Women Against Britishers महिलाओं की घाघरा पलटन का बलिदान

 Women Against Britishers देश की आजादी के लिए हजारों महिलाओं ने भी बलिदान दिया था, लेकिन कुछ ही महिलाओं को इतिहास में जगह मिली, बाकी कई वीरांगना महिलाएं गुमनाम हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम रूपी यज्ञ में अनेक वीरांगनाओं ने भी अपनी आहुति दी है।
अंग्रेजों से भारत माता को मुक्त करने के लिए कठिनतम परिस्थितियों में भी अंतिम सांस तक लड़ते हुए अपना बलिदान दिया, लेकिन भारतीय इतिहास का यह दुर्भाग्य रहा है कि केवल कुछ ही वीर वीरांगनाओं की शौर्य गाथा को जनमानस में व्यापक प्रचार प्रसार किया गया। न जाने कितनी वीर वीरांगनाओं की शौर्य गाथाएं आज भी इतिहास के गर्भ में दफन हैं। ऐसी ही वीरांगना थी बांदा की शीला देवी, जिसकी घागरा पलटन जब अंग्रेजों पर टूट पड़ती थी, तब अंग्रेजों को मात खानी पड़ती थी।
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जब बांदा पहुंची
चित्रकूट से शुरू हुई अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की ज्वाला मऊ से होते हुए तिंदवारी, पैलानी और बांदा तक आ पहुंची। यहां क्रांतिकारियों ने छावनी प्रभारी मिस्टर कॉकरेल गर्दन काट कर हत्या कर दी थी। नवाब बांदा अली बहादुर द्वितीय ने बांदा को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। इस बीच जनरल विटलाक ने हजारों सैनिकों के साथ बांदा में आक्रमण कर दिया। 5 दिन तक पूरे बांदा में अंग्रेज सैनिकों ने जमकर उत्पात मचाया। हजारों लोगों को इस हमले में जान गंवानी पड़ी। बांदा नवाब ने भी जान बचाकर परिवार सहित जलालपुर घाट से बेतवा पार करके कदौरा में शरण ली।
घाघरा पलटन का बलिदान
इधर, अंग्रेजों का विद्रोहियों पर हमला जारी था। वह बुरी तरह लूटपाट और संपत्ति को तहस-नहस कर रहे थे, जिससे यहां के लोग डरे और सहमे थे। इस जंग को धार देने वालों में अगर शीला देवी की घाघरा पलटन का जिक्र नहीं होगा तो बात अधूरी रहेगी। इतिहास के जानकार  बताते हैं कि अनपढ़ शीला देवी ने इस जंग में अहम हिस्सेदारी के लिए महिलाओं को एकजुट किया और फिर पनघट जाकर अन्य महिलाओं को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा करना शुरू किया। खास बात यह थी कि घाघरा पलटन में शामिल ज्यादातर महिलाएं बुर्कानशी और अनपढ़ थीं, लेकिन क्रांति की इबारत में उनकी हिस्सेदारी मर्दों से कम नहीं रही। अंग्रेजों के हमले से आहत शीला देवी अप्रैल 1858 में अपने साथ 100 महिलाओं को लेकर अंग्रेजी फौज से युद्ध के लिए कूद पड़ी थीं। महिलाओं पर हाथ उठाना नैतिकता के विरुद्ध था, लेकिन उस समय तो अंग्रेजों को हर हाल में बांदा पर कब्जा करना था।
वीरांगना शीला देवी की काट दी गर्दन
यह दुर्भाग्य था कि अंग्रेज सेना में अधिकतर भारतीय सैनिक थे। वीरांगना शीला देवी अपनी महिला सहयोगियों के साथ अंग्रेज सेना को ललकारते हुए घंटों मैदान में डटी रही। इस युद्ध में अंग्रेज सैनिकों ने तलवार से शीला देवी का सिर काट दिया। उसके साथ की सभी महिलाओं को भी युद्ध के मैदान में अपनी जान की बलि देनी पड़ी, लेकिन शहीद होने से पहले इन महिलाओं ने तलवार और हंसिया जैसे धारदार हथियारों से कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया और सैकड़ों की तादाद में अंग्रेजों को लहूलुहान कर दिया था। आज भी आजादी की लड़ाई का जब जिक्र होता है तो शीला देवी को भी लोग याद करके अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। यहां एक गीत भी प्रचलित है, जो शीला देवी की वीरता को दर्शाता है।
बांदा लुटो रात कें गुइयां।
शीला देवी लड़ी दौर कें, संग में सौक मिहरियां।
अंगरेजन ने करी लराई, मारे लोग लुगइयां।
शीला देवी को सिर काटो, अंगरेजन ने गुइयां।
भगीं सहेलीं सब गांउन सें, लैके बाल मुनइयां।
गंगासिंह टेर कें रै गये, भगो इतै ना रइया।।
ShiningUttarakhandNews

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