Badrinath Dham बद्रीनाथ धाम बंद होने पर कौन जलाता है अखंड दीप ?

Badrinath Dham बद्रीनाथ धाम में जब मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं तो यह मान्यता है कि भगवान बद्रीनाथ की पूजा की जिम्मेदारी देवताओं को सौंप दिया जाता है। बद्री विशाल को जोशीमठ में स्थित नृसिंह मंदिर में स्थापित किया जाता है। अगले छह महीनों तक लोग यहीं भगवान के दर्शन और पूजा कर सकते हैं। कपाट बंद होने से पहले मंदिर के गर्भगृह में 6 महीने तक जलने वाला अखंड दीप जलाया जाता है।

6 महीनों तक कैसे होती है पूजा Badrinath Dham

Badrinath Dham

बद्रीनाथ धाम के साथ कई मान्यताएं जुड़ी हैं। इस मंदिर का आदि शंकराचार्य से भी नाता है। भगवान की मूर्ति की पूजा को लेकर एक मान्यता यह है कि मूर्ति का स्पर्श कोई भी नहीं कर सकता है। गर्मियों के 6 महीनों में माता लक्ष्मी मंदिर परिसर में स्थित अपनी जगह पर विराजमान रहती है, लेकिन सर्दियों के दौरान मां मुख्य मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होती हैं। कपाट बंद होने के मौके पर बड़ी संख्या में लोग धाम में पहुंचे थे।

कौन करता है बद्रीनाथ धाम में पूजा ? 
बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का दूसरा निवास स्थान भी कहा जाता है। इसे दूसरा बैकुंठ कहते हैं। बद्रीनाथ के बारे में मान्यता है कि यहां 6 महीने ग्रीष्म काल में मनुष्य और 6 महीने शीतकाल में देवता पूजा करते हैं। देवताओं के प्रतिनिधि के तौर पर नारद जी शीतकाल में बद्रीनाथ की पूजा करते हैं और कपाट बंद हो जाने पर अखंड ज्योति को जलाए रखते हैं। बद्रीनाथ के कपाट खुलने पर अखंड ज्योति के दर्शन का भी बड़ा महत्व है। श्रद्धालु अलौकिक ज्योति के दर्शन के लिए बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो इस अखंड और अलौकिक ज्योति के दर्शन करता है, वह पाप मुक्त होकर मोक्ष का भागी बन जाता है।

विष्णु पुराणमहाभारत तथा स्कन्द पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। आठवीं शताब्दी से पहले आलवार सन्तों द्वारा रचित नालयिर दिव्य प्रबन्ध में भी इसकी महिमा का वर्णन है। बद्रीनाथ नगर, जहाँ ये मन्दिर स्थित है, हिन्दुओं के पवित्र चार धामों के अतिरिक्त छोटे चार धामों में भी गिना जाता है और यह विष्णु को समर्पित १०८ दिव्य देशों में से भी एक है। एक अन्य संकल्पना अनुसार इस मन्दिर को बद्री-विशाल के नाम से पुकारते हैं और विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मन्दिरों – योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को “पंच-बद्री” के रूप में जाना जाता है।