Bihar Election History कांग्रेस के पतन का सफर !

Bihar Election History बिहार चुनाव के नतीजों में मतदाताओं ने त्रिशंकु विधानसभा की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया है. मुट्ठी भर राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने नीतीश सरकार के खिलाफ 20 साल की सत्ता विरोधी लहर का अनुमान लगाया था. बिहार की जनता ने जोरदार तरीके से और पर्याप्त स्पष्टता के साथ मतदान किया है कि राज्य की बागडोर कौन संभालेगा. बिहार चुनाव 2025 में सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लिए संभवतः सबसे सशक्त और सबसे बड़ा जनादेश है. वहीं राजद और कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सबसे करारी हार में से एक है.

इस चुनाव की सबसे खास बात यह है कि भाजपा-जदयू गठबंधन के लिए अब तक के ये सर्वश्रेष्ठ आंकड़े हैं, जहां रुझानों के अनुसार, प्रत्येक पार्टी ने 80-90 प्रतिशत से अधिक का स्ट्राइक रेट बनाए रखा है. हालांकि, उनके समर्थन और जनादेश में यह वृद्धि रातोंरात नहीं हुई, बल्कि कई सालों की मेहनत के बाद यह रिजल्ट सामने आया है.

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3 डिजिट वाली कांग्रेस सिंगल डिजिट में सिमटी

अगर आजादी के बाद के चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो 1952 के चुनाव में 239 सीटें हासिल करने वाली सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस चुनाव में सिंगल डिजिट में सिमट गई है. 1952 के चुनाव में कांग्रेस को 41.38 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन आज यह 10 प्रतिशत से नीचे गिर गया है. 2020 के चुनावों में उसे सिर्फ 9 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे. अब साल 2025 में कांग्रेस को 8 फीसदी से थोड़े ऊपर वोट मिले हैं. आइये जानें 1952 से लेकर 2025 तक कांग्रेस के पतन की क्या टाइमलाइन रही है.

पहली बार कब गिरे वोट

कांग्रेस के वोटों में गिरावट 1980 के दशक में शुरू हुई, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आई. बिहार में लालू यादव युग के आगमन के साथ कांग्रेस का वोटिंग प्रतिशत और गिरता चला गया. 1990 के चुनाव में लालू यादव के नेतृत्व वाली जनता दल (जेडी) के हाथों कांग्रेस को करारा झटका लगा और वह पहली बार दूसरे स्थान पर खिसक गई. जेडी को 25.61 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस 24.78 प्रतिशत वोट पर ही सिमट गई.

दूसरी बार 11 फीसदी में सिमटी

दूसरी भारी गिरावट नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडी(यू) के उदय के साथ आई. 2000 में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर मात्र 11 प्रतिशत और 23 सीटें रह गई, जबकि उसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो इस पुरानी पार्टी का प्रदर्शन और भी खराब हो गया, और उसे केवल 5 प्रतिशत वोट और 10 सीटें ही मिलीं. 2010 का चुनाव और भी बुरा रहा, क्योंकि कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटें (8 प्रतिशत वोट शेयर) ही मिली थीं.