Gauchar Mela उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में एक है गौचर मेला

Gauchar Mela मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 73वॉं राजकीय औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक मेले का उद्घाटन किया। गौचर मेले में विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह मेला उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में से एक है। यह हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने का प्रभावी माध्यम होने के साथ-साथ स्थानीय आर्थिकी को भी सशक्त बनाता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जहां एक ओर हमारी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित किया जा रहा है,वहीं लोकल फॉर वोकल, मेड इन इंडिया जैसी योजना के माध्यम से स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

उत्तराखंड के पहाड़ी समाज में मेलों का बहुत महत्व है

यह मेले एक खुशनुमा समय बिताने और लोगों से मुलाकात करने का बहुत बड़ा अवसर होते हैं। इसके अलावा उत्तराखंड के विभिन्न संस्कृति और विचारों के प्रमुख मिलान स्थल होते हैं। गौचर मेला 1943 में शुरू हुआ था और इसका उद्घाटन तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर श्री बरनेडी ने किया था। तिब्बती क्षेत्रों दापा, दीफू, ज्ञानिंग और थोलिंग के व्यापारी ऊन, हिरण कस्तूरी, शिलाजीत, काला नमक और कई आयुर्वेदिक उत्पाद बेचते थे।

हालाँकि, 1962 में भारत और चीन के साथ समस्याओं के कारण, तिब्बत के साथ व्यापार बंद हो गया। ब्रिटिश हुकूमत के समय शुरू हुआ गौचर मेला अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत के साथ साथ व्यापारिक लिहाज से भी अपना खास महत्व रखता है. इस मेले को शुरू करने के उद्देश्य ही सामान का आदान-प्रदान करना था

1960 में लगा था भारत-तिब्बत व्यापार पर प्रतिबंध

1943 से 1947 तक यह मेला 1 से 7 सितंबर तक आयोजित होता रहा. लेकिन देश के स्वतंत्र होने के बाद यह मेला 14 नवंबर से शुरू हुआ. शुरुआती दौर में इस मेले में भोटिया जनजाति के लोग तिब्बत से ऊन, नमक, सोने-चांदी के आभूषण के अलावा भी कई वस्तुओं को लेकर बेचते थे. जिसके बदले वें यहां से गुड, कीमती जड़ी बूटी, फरण जैसी कई सामानों को ले जाते थे. जिसके कारण इसे ‘भोटिया मेला’ कहा जाता था. 1960 में पौड़ी से अलग होने के बाद भारत तिब्बत व्यापार पर प्रतिबंध लगने के बाद यहां के लिए नमक और अन्य वस्तुएं सीधे मैदानी भागों से आने लगी जिसके चलते इसका स्वरूप बदल गया. और 1960 से निरंतर मेला पहले से भव्य और व्यापक बन गया है.