History of Uttarakhand : मैं उत्तराखंड बोल रहा हूँ – सुनो मेरी कहानी , 1 Brave State

Special Report By – Anita Tiwari , Dehradun 

History of Uttarakhand आज जिस देवभूमि के जन्मोत्सव का हम और आप जश्न मना रहे हैं वो उत्तराखंड नब्बे के दशक में हुए जन आंदोलन के गर्भ से पैदा हुआ था । ऐसा आंदोलन, जिसमें गोदी के बच्चे लेकर 80 साल के बुजुर्ग लोगों की भागीदारी थी। कई परिवार तो ऐसे थे, जिनकी तीन-तीन पीढियां सक्रिय थीं।

History of Uttarakhand युवा बच्चे और महिलाएं मुठियाँ ताने निकलती थीं

 

History of Uttarakhand
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  • History of Uttarakhand उत्तरप्रदेश से उत्तराखंड का विभाजन 9 नवंबर 2000 को हुआ था. लेकिन इसके पीछे पृथक राज्य की मांग कर रहे आंदोलकारियों को मुजफ्फरनगर तिराहा गोली कांड के रूप में एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी थी. हालांकि अगर हम उत्तरांचल के विभाजन के कारणों की बात करें तो इसके बहुत ही सहज कारण निकलकर सामने आते हैं. दरअसल सामाजिक, प्रशासनिक और आर्थिक दृष्टी से उस समय संयुक्त प्रदेश की राजधानी लखनऊ पर्वतीय क्षेत्र से काफी दूर पड़ती थी. उस समय पहाड़ के लोगों का कहना था कि उनके क्षेत्र से देश की राजधानी पास है लेकिन प्रदेश की राजधानी पहुंचने के लिये उनको बहुत लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी.
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  • History of Uttarakhand उत्तरप्रदेश से विभाजन का मुख्य कारण यहां के लोगों की पहाड़ी पहचान थी. उत्तरप्रदेश अपनी विशालता की वजह से उत्तराखंड की पहचान के साथ न्याय नहीं कर पा रहा था. वह उनकी भाषा (कुमाऊं और गढ़वाली), उनकी संस्कृति, उनके साहित्य, उनके इतिहास और उनके लोगों की बात को और समस्याओं को सुन ही नहीं पा रहा था. जिससे वहां की जनता में असंतोष के स्वर फूटने लगे थे और उन्होंने अपने और अपने लोगों के लिये एक पहाड़ी राज्य की मांग काफी तेज कर दी थी.लेकिन हर बार उत्तर प्रदेश पहाड़ की इस मांग को राजनीतिक उपेक्षा की वजह सिरे से खारिज कर देता था.

History of Uttarakhand क्या है रामपुर तिराहा गोलीकांड़ ?

  • History of Uttarakhand यह पूरा घटना क्रम 1 अक्टूबर, 1994 की रात से जुड़ा है, जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे. आंदोलनकारी इस बात को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन करने जा रहे थे. प्रदेश के अलग-अलग पर्वतीय क्षेत्र से लोग 24 बसों में सवार हो कर 1 अक्टूबर को रवाना हो गये.लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया. पुलिस ने आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर में रोक दिया लेकिन आंदोलकारी लगातार दिल्ली जाने को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे.
History of Uttarakhand
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  • History of Uttarakhand इस दौरान पुलिस की आंदोलनकारियों से नोकझोंक शुरू हो गई. जानकारों और प्रत्यक्षदर्शियों के विभिन्न मीडिया संस्थानों को दिये गये इंटरव्यु के अनुसार राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक वहां पर पथराव शुरू हो गया. इस पथराव में तात्कालीन मुजफ्फरनगर के डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए.इसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं. उन्होंने आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया. लेकिन इन सब के घटनाओं के बीच यूपी पुलिस पर शर्मसार कर देने वाले कुछ आरोप लगे जिनका मुकदमा कई वर्षों तक चलता रहा. दरअसल प्रदर्शनकारियों के साथ रात में झड़प के दौरान यूपी पुलिस पर आंदोलनकारी महिलाओं के रेप का आरोप लगा.
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History of Uttarakhand स्थानीय गांव वाले बने थे सहायक

  • History of Uttarakhand हालांकि रात में जब आंदोलनकारियों पर यह बर्बरता हो रही थी तो उस रात स्थानीय गावों के लोग महिलाओं को शरण देने के लिए आगे भी आए थे. अगले दिन समाचार पत्रों से पता चल है कि उस दिन पुलिस की गोली से देहरादून निवासी रविंद्र रावत, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, जबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी शहीद हुए थे.देर रात लगभग पौने तीन बजे जब 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे तो पुलिस और राज्य आंदोलनकारियों के बीच झड़प शुरू हो गई. इस दौरान आंदोलनकारियों को रोकने के लिए यूपी पुलिस ने 24 राउंड फायरिंग की थी. जिसमें सात आंदोलनकारियों की जान चली गई और 17 राज्य आंदोलनकारी बुरी तरह घायल हो गये.
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रामपुर तिराहा कांड के बाद आंदोलन ने पकड़ी गति

  • History of Uttarakhand रामपुर तिराहा हत्याकांड के बाद उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनाये जाने की मांग ने और जोर पकड़ लिया क्योंकि मुजफ्फरनगर में हुई बर्बरता के बाद राज्य आंदोलनकारियों और प्रदेश के लोगों में गुस्सा भड़क गया था. नए राज्य की मांग को लेकर प्रदेश में धरना और विरोध प्रदर्शन का दौर चलने लगा. आंदोलन की आग में युवाओं, बुजुर्गों के साथ-साथ स्कूली बच्चे भी इस आग में कूद पड़े. आखिरकार 6 साल तक चले आंदोलन, धरना प्रदर्शन के बाद 9 नवंबर 2000 को अलग राज्य उतरांचल बनाने की स्वीकृति दे दी गई थी. वहीं 21 दिसंबर 2006 को यूपी से विभाजित हुए इस राज्य ‘उतरांचल’ का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया था.

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