Majnu ka tila दिल्ली के विधानसभा मेट्रो स्टेशन पर जैसे ही आप उतरेंगे, वहां कई ई-रिक्शा और ऑटो रिक्शा वाले आपको देखते ही मजनू का टीला चलने के लिए पूछेंगे? यदि आप दिल्ली में नए आए होंगे, या उस क्षेत्र में पहली बार गए होंगे, तो बेशक आपको ये नाम कुछ अजीब लग सकता है। पर जो लोग मजनू का टीला जा चुका हैं, उन्हें पता होगा कि ये स्थान कितनी अनोखी है और यहां तिब्बत (Little Tibet Delhi) से आए शर्णार्थियों की कितनी बड़ी जनसंख्या रहती है। पर ये स्थान अपने तिब्बती रेस्टोरेंट्स के लिए फेमस है, जहां आपको ऑथेंटिक तिब्बती भोजन मिलेगा। आपने भी सोचा होगा कि आखिर इस स्थान का नाम ये क्यों पड़ा ?
आपको बताते हैं इसका इतिहास Majnu ka tila
नॉर्थ दिल्ली जिले में एक क्षेत्र है, जिसका यूं तो आधिकारिक नाम न्यू अरुणा नगर कॉलोनी है, पर लोग इस स्थान को ‘मजनू का टीला’ (Majnu ka tila name history) के नाम से जानते हैं। बहुत पतली और अंधेरी गलियों में बसे इस क्षेत्र में इतनी रौनक होती है कि यदि आप अंधेरा होने के बाद भी यहां जाएंगे, तो लाइटों की जगमगाहट में रास्ता भूल सकते हैं। ये तिब्बती शर्णार्थियों की बहुत बड़ी बस्ती है। इस वजह से उन लोगों ने यहां अपने पूजा स्थल बनाए, रेस्टोरेंट बनाए, कपड़ों और अन्य तिब्बती मान्यताओं से जुड़ी चीजों को बेचने के लिए दुकानें खोलीं। पर इसका नाम लोगों के लिए एक बड़ा राज बना रहता है।
इस वजह से पड़ा ऐसा नाम
माना जाता है कि 15वीं सदी में सिकंदर लोदी के शासनकाल में एक सूफी संत था, जो ईरान का रहने वाला था। लोग उसे मजनू कहकर पुकारते थे। वो इसी क्षेत्र में एक टीले पर रहा करता था। इसी वजह से इस स्थान का नाम मजनू का टीला पड़ गया। ये स्थान यमुना नदी के पास थी और वो शख्स परमात्मा के नाम पर लोगों को निःशुल्क में नदी पार करवाने का काम करता था। उसी दौर में गुरू नानक देव जी यहां आए थे और उन्होंने जब मजनू का सेवा रेट देखा, तो बहुत खुश हुए और उसे आशीर्वाद दिया। वो उसकी सेवा रेट देखकर ही यहां रुक गए थे। 1783 में सिख मिलिट्री लीडर बघेल सिंह ने मजनू का टीला गुरुद्वारा बनवा दिया, क्योंकि यहां गुरू नानक देव जी रुके थे।