Satopanth Trek : रोमांचक ट्रैक सतोपंथ जहां मरी थी द्रौपदी और महाबली भीम

देहरादून से अनीता तिवारी की रिपोर्ट –

Satopanth Trek पहाड़ों की गोद में बसी ऐसी ही एक मज़ेदार और रोचक कहानी है स्वर्ग की सीढ़ियों की ! इन पौराणिक कथाओं से जुड़ी जगहों को माना गाँव के लोगों से सुनिए क्योंकि because  ये ही वो गाँव है जहाँ से स्वर्गारोहिणी और सतोपंथ झील ट्रेक की शुरुआत होती है। महाभारत के 18 अध्यायों में 17 वे अध्याय, महाप्राथनिका पर्व, में लिखा है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांचो पांडव भाइयों ने अपनी पत्नी द्रौपदी में साथ संन्यास ले लिया और महल और राज्य को छोड़, तपस्या के लिए निकल पड़े।

 

सतोपंथ झील और स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर तक का सफर Satopanth Trek

Satopanth Trek

तपस्या का ये सफर उन्हें हिमालय के पहाड़ों के बीच ले आया। स्वर्ग की और अपने इस आखिरी सफर पर बढ़ते हुऐ हर किसी को एक-एक कर अपने कर्मों का फल मिलने लगा। सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हुई। उनका दोष था बाकियों के मुकाबले अर्जुन से उनका ज्यादा प्रेम। सहदेव इस यात्रा को पूरा न कर सके और मारे गए क्योंकि because उनको अपने ज्ञान पर बहुत घमंड था। इसके बाद नकुल और अर्जुन की मृत्यु हुई जिसका कारण भी उनका अभिमान था। फिर भीम की बारी आयी और उनका दोष था उनका लालच।

ये लम्बी यात्रा पांडवों को हिमालय की गोद तक ले कर तो गयी पर युधिष्ठिर को छोड़ एक-एक कर सबकी मृत्यु हो गयी। यह माना जाता है की एक कुत्ते के भेस में छुपे धर्म के साथ युधिष्ठिर ने स्वर्ग की सीढ़ियां यहीं चढ़ी थी। महाभारत के इस अंश में यह भी बताया जाता है कि बिना मानवीय शरीर छोड़े यही स्वर्गरोहिणी का रास्ता है जहाँ से आप स्वर्ग जा सकते हैं।


जून और अगस्त के महीने में अगर आप बद्रीनाथ आएँगे तो आपको ऐसे कई साधू संत मिलेंगे जो बद्रीनाथ से सतोपंथ और स्वर्गरोहिणी का सफर तय करते हैं। although माना जाता है कि सतोपंथ झील का यह सफर असली मायने में सत्य के पथ की यात्रा है। स्वर्गरोहिणी तक की यात्रा के बारे में माना जाता है कि ये साक्षात स्वर्ग के मार्ग पर चलने के बराबर है। यहाँ आने वाले सभी हिन्दू तीर्थयात्री यह मानते हैं कि मानवीय शरीर के साथ अगर आप पूरी धरती में कहीं से भी स्वर्ग जा सकते हैं तो वो स्वर्गरोहिणी ग्लेशियर का मार्ग है।


माना जाता है कि पांडवों की यात्रा के दौरान नकुल की मृत्यु लक्ष्मी वन में ही हुई थी। स्वर्गारोहिणी जाने वाले यात्री पहली रात इसी लक्ष्मी वन में रुकते हैं। लक्ष्मी वन से अगले दिन कुछ ही दूर चलकर यात्री सहस्त्रधारा पहुँचते हैं। ग्रेनाइट के एक टीले से गिरता हुआ ये झरना सचमुच मन छू लेता है। पांडवों के एक और भाई सहदेव की मृत्यु यहाँ हुई थी। इस जगह से आगे बढ़कर आस-पास के नज़ारे और भी सुन्दर हो जाते हैं। अगर if आप मैप में देखें तो आप इस वक़्त ठीक केदारनाथ के पीछे वाली पहाड़ी पर होंगे।



इस यात्रा में अगली जगह है चक्रतीर्थ गुफाएं। काफी लोग रात यहाँ बिताना भी पसंद करते हैं पर अगर आप चल सकें तो यहाँ से कुछ ही दूरी पर सतोपंथ झील है और रात वहाँ बिताना ज्यादा बेहतर होता है। सतोपंथ झील के बारे में किस्से कहानियां बहुत हैं पर ये वो जगह भी है जहाँ भीम ने अपनी अंतिम सासें ली थी। सैलानी यहाँ आकर रात को साधु संतों की झोपड़ियों में रात बिताते हैं। कुछ लोग अपने लिए गुफाएँ ढूंढ लेते हैं या टेंट बना लेते हैं।


सतोपंथ झील में एक दिन बिताने के बाद आगे बढ़ कर लोग स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर के दर्शन करने जाते हैं। ज्यादातर यात्री सतोपंथ से ही वापस चले जाते हैं, पर इस रास्ते पर आगे चंद्र कुंड और सूर्य कुंड के दर्शन करके स्वर्गरोहिणी साफ़-साफ़ दीखता है। इस ग्लेशियर के सीढ़ीनुमा आकार को ही स्वर्ग की सात सीढ़ियां माना जाता है। हालाँकि although किसी भी समय पर यहाँ कोहरे और बर्फ के कारण तीन से ज्यादा सीढ़ियां नहीं दिखती हैं।

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