Shiv Temples योगनगरी में प्रकृति की छटा श्रावण मास में और बढ़ जाती है। इस दौरान भगवान शिव की तपस्थली नीलकंठ महादेव मंदिर में जलाभिषेक का भी विशेष महत्व है। यहां जलाभिषेक के बाद आसपास के चंद्रेश्वर महादेव, सोमेश्वर महादेव व वीरभद्रेश्वर महादेव के दर्शन की भी परंपरा है। आप भी भगवान नीलकंठ महादेव के दर्शन के बाद आस्था की इस त्रिवेणी में पुण्य की डुबकी लगाएं।
नीलकंठ महादेव मंदिर की लोकप्रियता देशभर में Shiv Temples
ऋषिकेश से 26 किमी दूर पौड़ी जिले में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर की लोकप्रियता देशभर में है। मान्यता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान किया था। विष की उष्णता अधिक होने के कारण उनके कंठ का रंग नीला पड़ गया। विष की उष्णता को शांत करने के लिए महादेव ने इस स्थान पर वर्षों तक तप किया। इसी कारण उन्हें नीलकंठ महादेव नाम से पुकारा जाने लगा।
ऋषिकेश में 10 किलोमीटर की परिधि में स्थित तीनों शिवालय चंद्रेश्वर महादेव, सोमेश्वर महादेव व वीरभद्रेश्वर महादेव भी भगवान भोलेनाथ की अद्भुत लीलाओं के साक्षी हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि नीलकंठ महादेव की यात्रा पर आने वाले शिवभक्तों को इन तीनों शिवालयों में भी जलाभिषेक जरूर करना चाहिए।
चंद्रेश्वर महादेव मंदिर
चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित चंद्रेश्वर महादेव मंदिर आइएसबीटी से 2 किलोमीटर दूर है। मंदिर के महंत कृष्णा पुरी बताते हैं कि चंद्र देव को श्राप मिला था, जिससे उनकी काया जीर्ण-क्षीर्ण हो गई। श्राप से मुक्ति के लिए उन्होंने इस स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर चंद्र देव को दर्शन दिए और उन्हें अपने मस्तक में धारण किया। भगवान की इसी लीला के कारण इस स्थल को चंद्रेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना गया।
सोमेश्वर महादेव मंदिर
आईएसबीटी से 4 किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश के गंगा नगर में स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर में ऋषि सोम ने भगवान शिव का घोर तप किया था। इससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और 11 रुद्रों को प्रकट किया। मान्यता है कि ये प्रथम सिद्ध पीठ है, जहां 11 वट वृक्ष मौजूद हैं। इन्हें 11 रुद्रों का स्वरूप माना गया है। इन वट वृक्षों के रूप में भगवान शिव की कृपा यहां भक्तों पर बरसती है।
वीरभद्रेश्वर महादेव मंदिर
वीरभद्रेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी आचार्य विनीत शर्मा के अनुसार, यह कथा प्रचलित है कि राजा दक्ष ने हरिद्वार के कनखल में महायज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवता आमंत्रित थे। माता सती ने भी जब महायज्ञ में चलने का आग्रह किया तो भगवान शिव ने बगैर बुलावे जाने से मना कर दिया। इसके बाद जब माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में पहुंचीं तो वहां भगवान शिव के अपमान से क्रोधित हो गईं।
इसके बाद उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। भगवान शिव को जब यह पता चला तो उन्होंने रौद्र रूप धारण कर अपनी जटाओं से वीरभद्र को प्रकट किया। इसके बाद वीरभद्र ने दक्ष के सिर को धड़ से अलग कर दिया। इतना कुछ करके भी जब वीरभद्र का क्रोध शांत नहीं हुआ। तब भगवान शिव ने उन्हें शांत कराया और उनके साथ स्वयं भी लिंग रूप विराजमान हो गए। यह मंदिर वर्तमान में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है।
यहां भी कर सकते हैं दर्शन
शिवालयों में जलाभिषेक के साथ ऋषिकेश में भरत मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, शत्रुघ्न मंदिर, भूतनाथ मंदिर, परमार्थ निकेतन, गीता आश्रम आदि में भी दर्शन का लाभ ले सकते हैं। इसके अलावा आस्था पथ की सैर करते हुए पतित पावनी गंगा की सुंदरता को भी निहार सकते हैं।