Kaal Bhairav Avatar: कालभैरव भगवान शिव के ही अंश माने जाते हैं या यूं कहें कि यह शिवजी के आवेश अवतार हैं। सृष्टि में इनका आगमन एक विशेष स्थिति में हुआ था। और इन्होंने सृष्टि में भगवान शिव की परम सत्ता को स्थापित किया। इस संदर्भ में एक रोचक कथा है तो आइए जानते हैं कथा काल भैरव की।
जब ब्रह्मा और विष्णु में हुआ टकराव
शिव महापुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण में इस घटना का विस्तार से वर्णन मिलता है। सृष्टि के आरंभ में एक सवाल उठा—सबसे बड़ा कौन? ब्रह्मा, जो सृष्टि के रचयिता हैं, या विष्णु, जो सृष्टि का पालन करते हैं? दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया। और तभी अचानक एक अनंत प्रकाश स्तंभ प्रकट हुआ—ज्योतिर्लिंग! इसका न कोई आरंभ था, न कोई अंत। विष्णु ने कहा, ‘अगर मैं इसकी जड़ तक पहुंच गया, तो मैं श्रेष्ठ हूं।’ और ब्रह्मा ने कहा, ‘अगर मैं इसकी ऊंचाई तक पहुंच गया, तो मैं सर्वश्रेष्ठ हूं।’
विष्णु वाराह का रूप लेकर धरती के नीचे गए, लेकिन उन्हें कोई अंत न मिला। उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे असफल रहे। लेकिन ब्रह्मा ने ऐसा नहीं किया। वे हंस का रूप धारण कर ऊपर उड़ चले और छल किया। रास्ते में उन्हें केतकी का एक फूल मिला, जो पहले से ही शिवलिंग पर गिरा था। ब्रह्मा ने उससे कहा, ‘तुम गवाही दो कि मैंने शिवलिंग का अंत देख लिया।’ केतकी फूल ने हां कर दी। ब्रह्मा वापस आए और गर्व से बोले, ‘मैंने देख लिया! मैं सबसे श्रेष्ठ हूं।’ लेकिन क्या कोई शिव से झूठ बोल सकता है?
शिव का क्रोध और कालभैरव का प्रकट होना(Kaal Bhairav Avatar)
शिव सत्य के प्रतीक हैं। जब ब्रह्मा ने झूठ बोला, तो शिव प्रकट हुए—लेकिन शांत नहीं, प्रचंड रूप में! उनकी दोनों भौहों के बीच से प्रकट हुआ एक भयानक योद्धा—कालभैरव! उनका तेज़ ऐसा था कि स्वयं देवता कांप उठे। और फिर क्षणभर में, कालभैरव(Kaal Bhairav Avatar) ने अपने नख से ब्रह्मा का एक सिर अलग कर दिया। ब्रह्मा सन्न रह गए! देवताओं में हाहाकार मच गया। यहीं पर ब्रह्मा को अहसास हुआ कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती कर दी।
लेकिन शिव ने जो किया, वह ब्रह्म हत्या कहलाया। यह सबसे बड़ा पाप था, और इसके प्रायश्चित के लिए शिव को भिक्षाटन करना पड़ा। वे संपूर्ण ब्रह्मांड में भिक्षा मांगते हुए घूमे, लेकिन उनके हाथ में ब्रह्मा का कटा हुआ सिर चिपका रहा। देवताओं ने भी उपाय खोजे, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला।” अंततः, जब शिव काशी पहुंचे, तो ब्रह्मा का सिर उनके हाथ से गिर पड़ा। वहीं ‘कपाल मोचन’ नामक स्थान बना। यही आज काशी का प्रसिद्ध कालभैरव मंदिर है। कहा जाता है कि काशी में मोक्ष प्राप्त करने के लिए पहले कालभैरव के दर्शन करने ही पड़ते हैं।