Special Report By : Anita Tiwari , Dehradun
Swati Kolkata Sweets रसगुल्ले का नाम सुनते ही हर खाने के शौकीन के मुंह में पानी तो आ ही गया होगा. कोलकाता शहर की पहचान और मिठाइयों की जान, माने जाने वाले रसगुल्ले का नाम सुनते ही दिमाग में एक सफ़ेद, स्पंजी और रसदार चीज़ की छवि आती है. लेकिन क्या आपने कभी हरे, लाल या नीले रंग के रसगुल्लों के बारे में सुना है या फिर इसके बारे में कभी सोचा है? अगर नहीं और यह सुनकर आप चौंक गए तो आगे की बात जानकर तो आप हैरत में पड़ जाएंगे. जी हां, लाल, हरे और नीले रसगुल्लों के अलावा यहां मिलते हैं मिर्ची और करेले के भी रसगुल्ले.
Swati Kolkata Sweets 300 से अधिक प्रकार के रसगुल्ले किए हैं तैयार
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- स्वाती सराफ़ कहती हैं कि रसगुल्लों के साथ प्रयोग करने की प्रेरणा उन्हें अपनी मां से मिली. दरअसल, उनकी मां मधुमेह की बीमारी से ग्रस्त थीं. वह कहती हैं कि उनकी मां को मिठाई बहुत पसंद थी पर मधुमेह से ग्रस्त होने के कारण वह इसका अधिक सेवन नहीं कर पाती थीं. फिर एक दिन उन्होंने यू ही सोचा कि क्यों ना रसगुल्लों को एक अलग और अनोखा ट्विस्ट दिया जाए जिससे उनकी मां भी बेहिचक रसगुल्लों का सेवन कर पाएं. स्वाती ने तो कभी सोचा भी नहीं होगा कि रसगुल्लों को अनोखा ट्विस्ट देने का यह विचार उनके जीवन को ही एक नया ट्विस्ट दे देगा. मां के लिए कुछ करने के विचार से प्रेरित होकर उठाया गया एक कदम आज दुनिया भर में ना सिर्फ उनके बल्कि कोलकाता और रसगुल्लों के नाम की भी ख्याति बिखेर रहा है.
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- वह बताती हैं कि 2016 में शुरू किए गए रसगुल्लों के साथ प्रयोग के इस सफ़र में आज वह काफ़ी आगे तक आ चुकी हैं. उन्होंने अपने सफ़र की शुरुआत पचास प्रकार के रसगुल्लों से की थी और आज वह तीन सौ से भी अधिक प्रकार के रसगुल्ले बना चुकी हैं. लगभग हर प्रकार के फलों का प्रयोग करके वह रसगुल्ले बना चुकी हैं. आपको बता दें कि फल तो फल उन्होंने सब्जियों को भी नहीं छोड़ा है. कई प्रकार की सब्जियों से भी वह रसगुल्ला बना चुकी हैं. स्वाती सराफ़ की दुकान में आपको टमाटर, शिमला मिर्च और यहां तक कड़ी पत्ते के रसगुल्ले भी मिल जाएंगे. और सिर्फ यही नहीं मीठे से दूर-दूर तक नाता ना रखने वाले करेले और मिर्ची के भी उन्होंने रसगुल्ले बनाए हैं.
Swati Kolkata Sweets जानिए रसगुल्लों से प्रयोग के पीछे का कारण
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- स्वाती बताती हैं कि पश्चिमी मिठाइयों के बढ़ते चलन के कारण आजकल लोग पारंपरिक भारतीय मिठाइयों को भूलते जा रहे हैं. पहले कोलकाता के हर उत्सव, समारोह में रसगुल्ला बनता था लेकिन आजकल केक ने रसगुल्ले की जगह ले ली है. इसका एक कारण लोग बताते हैं कि पारंपरिक मिठाइयों में चीनी की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है. इसलिए उन्होंने शुरुआत की स्वनिर्धारित रसगुल्लों की.वह कहती हैं कि उनका लक्ष्य पांच सौ प्रकार के रसगुल्ले बनाना है. वह तीन सौ प्रकार के रसगुल्ले बना चुकी हैं और आने वाले कुछ वक़्त में ही वह पांच सौ का आंकड़ा भी पार कर लेंगी. उनके मुताबिक उनका असल मकसद है अपने ग्राहकों तक प्राकृतिक चीज़ों से बने हुए प्रोडक्ट पहुंचाना.
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